Prithviraj Kapoor: राज कपूर से पहले फिल्म साम्राज्य पर था पृथ्वीराज का राज

  • प्रदीप सरदाना

 वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक

जब कभी भारतीय सिनेमा के पितामह की बात होती है तो सभी फ़िल्मकार दादा साहब फाल्के (Dadasaheb Phalke) का नाम लेते हैं। यह सही भी है क्योंकि फाल्के ही भारतीय सिनेमा के जनक थे। जिन्होंने 1903 में देश में पहली मूक फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ (Raja Harishchandra) बनाकर रुपहले सपनों की नयी दुनिया बनाई।

इसीलिए देश का सर्वोच्च फिल्म सम्मान भी ‘दादा साहब फाल्के’ भी उन्हीं के नाम पर है। लेकिन मैं फाल्के के साथ पृथ्वीराज कपूर (Prithviraj Kapoor) को भी पितामह के तुल्य मानता हूँ। भारतीय सिनेमा विशेषकर हिन्दी सिनेमा के प्रारम्भ से पृथ्वीराज कपूर (Prithviraj Kapoor) का सिनेमा में जो योगदान है, उसे सही मायने में भुला दिया गया है।

आज की पीढ़ी के बहुत से सिनेमा प्रेमी तो पृथ्वीराज कपूर (Prithviraj Kapoor) का नाम भी अच्छे से नहीं जानते। जो जानते हैं वे भी सिर्फ इतना कि वह राज कपूर के पिता थे। या फिर यह कि वह ‘मुगल-ए-आजम’ (Mughal E Azam) फिल्म में अकबर (Akbar) बने थे। लेकिन पृथ्वीराज का सिनेमा में तो व्यापक योगदान है ही, रंगमंच में भी उनका योगदान अतुलनीय है।

पृथ्वीराज कपूर (Prithviraj Kapoor) एक ऐसे अभिनेता तो थे ही जिन्होंने फिल्मों में एक ऐसे कपूर खानदान की स्थापना की जो आगे चलकर फिल्म संसार का सबसे बड़ा और सबसे लोकप्रिय खानदान बन गया। पृथ्वीराज के तीनों बेटे राज कपूर (Raj Kapoor), शम्मी कपूर (Shammi Kapoor) और शशि कपूर (Shashi Kapoor) के बाद, उनके पोते रणधीर (Randhir Kapoor), ऋषि (Rishi Kapoor) और राजीव (Rajiv Kapoor) आए तो अब उनकी चौथी पीढ़ी से रणबीर कपूर (Ranbir Kapoor) इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। उनकी परपोती करिश्मा (Karishma Kapoor) और करीना (Kareena Kapoor) की गिनती भी देश की अच्छी फिल्म अभिनेत्री के रूप में होती है।

मूक सिनेमा के दौर से ही अपना फिल्म करियर शुरू करने वाले पृथ्वीराज जब 1929 में 23 साल की उम्र में लायलपुर से मुंबई आए थे तब कोई सोच भी नहीं सकता था कि उनका परिवार एक दिन फिल्मी दुनिया में राज करेगा। करीब 10 मूक फिल्में करने के बाद पृथ्वीराज को देश की पहली सवाक फिल्म ‘आलमआरा’ मिल गयी थी। इसके बाद इस महान अभिनेता ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

बड़ी बात यह थी कि पृथ्वीराज ने रंगमंच को भी अत्यंत महत्व दिया। सन 1944 में उन्होंने पृथ्वी थिएटर (Prithvi Theatre) की स्थापना करके देश भर में रंगमंच संस्कृति से क्रान्ति कर दी। देश के 100 से अधिक शहरों में पृथ्वीराज ने अपने शकुंतला, दीवार, पठान और पैसा जैसे नाटकों के हजारों शो किए।

उधर इनकी फिल्मों की बात करें तो उन्होंने कुल करीब 50 फिल्मों में अभिनय किया। जिनमें सिकंदर, दहेज, विद्यापति, तीन बहूरानियाँ और नानक दुखिया सब संसार जैसी फिल्में हैं। साथ ही उनके बेटे राज कपूर द्वारा बनाई ‘आवारा’ और ‘कल आज और कल’ जैसी शानदार फिल्में भीं। जिनमें कपूर परिवार की तीन पीढ़ियों ने साथ काम किया था। लेकिन जिस फिल्म ने पृथ्वीराज को अमर कर दिया वह थी –‘मुगल-ए-आजम’। इसमें पृथ्वीराज ने बादशाह अकबर का किरदार इतने बेहतरीन ढंग से निभाया कि जिसे देख लगता है अकबर ऐसे ही रहे होंगे। आज भी यह फिल्म भारतीय सिनेमा के इतिहास की सबसे बड़ी फिल्म मानी जाती है।

सिर्फ एक रुपये में साइन की थी ‘मुगल-ए-आजम’

दिलचस्प यह भी है कि फ़िल्मकार के॰ आसिफ ने जब अपनी फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ में पृथ्वीराज को अनुबंधित करते हुए उनसे पूछा कि वह इसके लिए कितने रुपए लेंगे। दिलीप कुमार और मधुबाला को इस फिल्म के लिए मुंह मांगी कीमत मिल रही है। लेकिन पृथ्वीराज ने कहा- ‘’मैं अपनी कीमत नहीं बताऊंगा, जो भी देना चाहो दे देना।‘’

इस पर के आसिफ ने ब्लैंक चैक  पृथ्वीराज को देते हुए कहा, अच्छा अनुबंध के लिए तो अग्रिम राशि आप खुद ही भर लें। इस पर पृथ्वीराज ने उस चैक पर सिर्फ एक रुपया भरकर कहा, अब आप जब भी शूटिंग शुरू करना चाहें बताएं। पृथ्वीराज जैसे दिग्गज अभिनेता की यह भलमानस देख तब के॰ आसिफ की आँखों में आँसू आ गए थे।

अखंड भारत के लायलपुर की तहसील समुंदरी में 3 नवंबर 1906 को जन्मे  पृथ्वीराज को अभिनय का शौक अपने बचपन से ही था। जब वह 8 साल के थे तब पहली बार उन्होंने अपने एक स्कूल के नाटक में हिस्सा लिया था। जब 1924 में पृथ्वीराज ने पेशावर के एडवर्ड कॉलेज में दाखिला लिया तो वहाँ भी उनका अभिनय प्रेम साथ आ गया। दिलचस्प यह है कि कॉलेज में इन्होंने जिस अँग्रेजी नाटक ‘राइडर्स टू द सी’ से शुरुआत की उसमें पृथ्वीराज ने एक महिला पात्र की भूमिका निभाई थी।

पेशावर के प्रतिष्ठित कॉलेज से ग्रेजुएट करने के बाद 1928 में इन्होंने पहले लाहौर जाकर थिएटर करने का प्रयास किया। लेकिन वहाँ इनके उच्च शिक्षा देखकर लोग इन्हें थिएटर में काम देने से कतराते थे। तब कुछ आगे बढ़ने के लिए 29 सितंबर 1929 को पृथ्वीराज कपूर ने मुंबई की धरती पर पहला कदम रखा। मुंबई ने इनका जिस तरह स्वागत किया, इन्हें जो कुछ दिया वह सब बताने की जरूरत नहीं। आज पृथ्वीराज कपूर के परिवार के सदस्यों के नाम और काम की गूंज दुनियाभर में है।

पृथ्वीराज मुंबई को सबसे पहले मुफ्त में काम करने की शर्त पर इंपीरियल फिल्म कंपनी में एक एक्स्ट्रा कलाकार के रूप में काम मिला। इनकी वह पहली मूक फिल्म थी ‘चैलेंज’। लेकिन इस फिल्म की शूटिंग के पहले दिन ही निर्देशक बी पी मिश्रा ने इन्हें अपनी अगली फिल्म ‘सिनेमा गर्ल’ का हीरो बना दिया।  इसके बाद इन्हें और भी मूक फिल्में मिलती रहीं।

देश में सन 1931 में जब पहले सवाक फिल्म ‘आलम आरा’ आई तो उसमें भी इनकी अहम भूमिका थी। तब पृथ्वीराज सिर्फ 24 बरस के थे। लेकिन ‘आलम आरा’ में पृथ्वीराज ने युवा से वृद्धावस्था तक के व्यक्ति की भूमिका को निभाया। जिसके लिए पृथ्वीराज ने 8 अलग अलग किस्म की दाढ़ियों और अलग अलग आवाज़ के संवादों से, अपनी इस भूमिका को बेहद खूबसूरती से अंजाम दिया।

नेहरू भी थे पृथ्वीराज की प्रतिभा के कायल

पृथ्वीराज कपूर ने अपने शानदार अभिनय और शालीन व्यवहार से जल्द ही फिल्म संसार में अपनी एक बड़ी और सम्मान जनक छवि बना ली थी। आज कुछ लोग कहते हैं कि पृथ्वीराज का नाम उनके बेटे राज कपूर के कारण बड़ा हुआ। लेकिन ऐसा कहने वाले यह नहीं जानते कि पृथ्वीराज कपूर ने रंगमंच, सिनेमा और समाज के लिए किए गए अनुपम कार्यों के चलते, अपना कद इतना ऊंचा कर लिया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू उनके मुरीद हो गए थे।

पृथ्वीराज कपूर और पंडित नेहरू का रिश्ता दोस्ती जैसा था। पंडित नेहरू, पृथ्वीराज की कला, व्यवहार और सूझबूझ के कितने कायल थे उसकी मिसाल कई बातों से मिलती है। पहली तो यह कि जब 1951 में वियाना में विश्व शांति सम्मेलन’ का आयोजन हुआ तो पृथ्वीराज कपूर ने उसमें भारत का प्रतिनिधित्व किया।

इतना ही नहीं पंडित नेहरू ने पृथ्वीराज कपूर को पहली 1952 में राज्यसभा का सदस्य मनोनीत कर, फिल्म दुनिया से राज्यसभा में लाने की परंपरा शुरू की। इसके बाद 1954 में एक बार फिर से पृथ्वीराज कपूर को राज्यसभा का सदस्य बनाया गया। जिससे वह 8 वर्ष तक राज्यसभा के सदस्य रहे। यहाँ तक 1956 में उन्हें भारतीय फिल्म प्रतिनिधिमंडल का प्रमुख बनाकर चीन भी भेजा गया।

अपनी बेमिसाल उपलब्धियों के लिए पृथ्वीराज को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार के साथ पदम भूषण सम्मान भी मिला। वहाँ दादा साहब फाल्के सम्मान भी उन्हें प्रदान किया गया। लेकिन फाल्के सम्मान पाने से पहले ही 29 मई 1972 को उनका सिर्फ 65 बरस की उम्र में निधन हो गया।

आज पृथ्वीराज कपूर को दुनिया से अलविदा हुए 51 बरस हो चले हैं। लेकिन उनकी बातों, उनकी यादों का यह सिलसिला चलता रहना चाहिए। जिससे लोग जान सकें फिल्मों में कपूर परिवार का जलवा राज कपूर के कारण ही नहीं है। राज कपूर से पहले फिल्म संसार पर पृथ्वीराज का राज था।

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