Pandit Vishwa Mohan Bhatt: पंडित विश्व मोहन भट्ट ने अपने संगीत से किया सभी को मोहित, टैगोर को दी अविस्मरणीय श्रद्धांजलि

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक

पंडित विश्व  मोहन भट्ट (Pandit Vishwa Mohan Bhatt) देश के कुछ ऐसे चुनिंदा कलाकारों में से हैं जिन्होंने अपने शास्त्रीय संगीत से विश्व भर में अपना, अपनी कला और भारत का नाम रोशन किया है। वह जब मोहन वीणा बजाते हैं तो कुछ ही पलों में हर कोई उनसे जुड़कर उन्हीं का हो जाता है।

कुछ ऐसा ही उस दिन दिल्ली के कमानी सभागार में हुआ। मौका था साहित्य अकादेमी (Sahitya Akademi) द्वारा आयोजित विश्व के सबसे बड़े साहित्य उत्सव का। साहित्य अकादेमी ने 12 मार्च को अपनी स्थापना के 70 बरस पूरे करने के साथ, उसी दिन अपने प्रतिष्ठित अकादेमी पुरस्कार (Sahitya Akademi Award) का अर्पण समारोह भी रखा था। पुरस्कार अर्पण समारोह के तुरंत बाद ‘कस्तूरी’ नाम से एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन था।

इस कार्यक्रम के माध्यम से गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) को संगीतमय श्रद्धांजलि दी जानी थी। जिसमें टैगोर (Rabindranath Tagore) की तीन कवितायें ‘हिरण कस्तूरी’, ‘कागजेर नौका’ और टोबू मोने रेखो’ के हिन्दी अनुवाद को स्वर, वादन और नृत्य के सूत्र में पिरोया गया।

इन कविताओं का अनुवाद गीतकार गुलजार (Gulzar) और कवि प्रयाग शुक्ल (Prayag Shukla) ने तो अच्छे से किया ही। उधर विश्व मोहन भट्ट (Vishwa Mohan Bhatt) के मोहन वीणा वादन, शिंजिनी कुलकर्णी के कथक नृत्य और अंकिता जोशी के शास्त्रीय गायन से यह एक सुंदर और अविस्मरणीय प्रस्तुति बन गयी।

पंडित विश्व मोहन भट्ट, शिंजिनी कुलकर्णी और संदीप भुटोरिया

 

संदीप भुटेरिया ने प्रस्तुति को दिये पंख

उधर इस प्रस्तुति को नया अंदाज़ और नया रंग देने में संदीप भुटेरिया (Sandeep Bhutoria) की भी अहम भूमिका रही। भुटेरिया ने अपनी परिकल्पना से इस प्रस्तुति को पंख तो दिये ही, साथ ही वह एक सूत्रधार के रूप में भी बहुत अच्छे से जुड़े रहे। फिर तबले पर राम कुमार मिश्रा (Ram Kumar Mishra), गिटार पर रत्न प्रसन्ना (Ratan Prasanna) और कीबोर्ड पर प्रवीण कुमार (Praveen Kumar) के परस्पर तालमय से यह ‘कस्तूरी’ और भी सुगंधित होती रही।

हालांकि लंबे पुरस्कार समारोह को देखने के बाद बहुत से दर्शक सभागार से निकलने का मन बना चुके थे। लेकिन जैसे ही विश्व मोहन भट्ट (Vishwa Mohan Bhatt) ने अपनी मोहन वीणा के तार छेड़े, पूरा वातावरण ही बदल गया। उनकी धुनें कानों में रस घोलने लगीं। श्रोताओं के दिल और मस्तिक के तार संगीत से ऐसे जुड़े कि सुकून की सुखद अनुभूति सिर से पाँव तक होने लगी। संगीत को बहुत कम जानने-समझने वाला साधारण श्रोता भी, वाद्य की इन स्वर लहरियों में बह निकला।

साहित्य अकादेमी के सचिव के श्रीनिवासराव, वरिष्ठ पत्रकार , समीक्षक प्रदीप सरदाना, साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधवकांत कौशिक और उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा कमानी सभागार में कार्यक्रम के दौरान।

ग्रेमी और पदमभूषण जैसे सम्मान मिल चुके हैं भट्ट को

लगभग 74 वर्षीय पंडित विश्व मोहन भट्ट (Pandit Vishwa Mohan Bhatt) यूं तो पंडित रविशंकर (Pandit Ravishankar) के शिष्य हैं। लेकिन वह जयपुर के एक ऐसे संगीत परिवार से हैं, जो 300 बरस से संगीत साधना में तल्लीन रहा है। पंडित भट्ट की एक अलग और विशिष्ट पहचान इसलिए भी है कि उन्होंने पश्चिमी वाद्य यंत्र हवाईन गिटार में संशोधन करके 14 और तार जोड़कर, जिस मोहन वीणा वाद्य यंत्र का आविष्कार किया, वह अब भारतीय शास्त्रीय संगीत का खूबसूरत साज़ बन चुका है।

प्रदीप सरदाना और विश्व मोहन भट्ट कार्यक्रम  के दौरान

पिछले 50 बरसों में विश्व मोहन (Vishwa Mohan Bhatt) अपनी इसी मोहन वीणा से लाखों-करोड़ों को मोहित कर चुके हैं। अपनी इसी अद्धभुत कला के लिए भारत सरकार ने तो उन्हें पदमश्री और फिर पदमभूषण से सम्मानित किया ही। उन्हें संगीत नाटक अकादेमी (Sangeet Natak Akademi) का प्रतिष्ठित पुरस्कार भी मिला। साथ ही बीस साल पहले वह विश्व का सबसे बड़ा संगीत पुरस्कार ग्रेमी भी जीत चुके हैं।

शिंजिनी का आकर्षक कथक नृत्य

इधर अब ‘कस्तूरी’ की उनकी चाहे पहली संगीत प्रस्तुति थी। लेकिन यह इतनी दिलकश बन गयी कि निश्चय ही आगे भी यह प्रस्तुति फिर-फिर-फिर होती रहेगी। जिसमें विश्व मोहन भट्ट (Pandit Vishwa Mohan Bhatt) ने तो मंत्रमुग्ध किया ही। शिंजिनी कुलकर्णी (Shinjini Kulkarni) ने इस पर जो अपना कथक नृत्य किया वह भी बेहद आकर्षक था। शिंजिनी ने अपने भाव, मुद्रा और नृत्य से यह सिद्द कर दिया कि वह अपनी कला में निपूर्ण हैं, उनका भविष्य उज्ज्वल है। उधर अंकिता जोशी के स्वर भी मधुर होने के साथ अच्छे और सधे हुए रहे।

दिलचस्प बात यह थी कि जहां यह कार्यक्रम हुआ, वह साहित्य अकादेमी (Sahitya Akademi) का बड़ा साहित्यिक मंच था। जहां देश भर के बड़े साहित्यकार आसीन थे। लेकिन ‘कस्तूरी’ (Kasturi) के इस संगीतमय अवतार से साहित्य और संगीत एक हो गए।

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