Nanda: ज़िंदगी भर प्यार के लिए तरसती रही नंदा, सगाई होकर भी नहीं हो सकी शादी, खूबसूरत हीरोइन की दर्दभरी दास्तान

  • प्रदीप सरदाना 

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक 

नंदा (Nanda) फिल्म संसार की एक ऐसी खूबसूरत अभिनेत्री रही हैं जिनका नाम आते ही कई शानदार फिल्में याद हो आती हैं। साथ ही याद हो आते हैं कुछ वे मधुर गीत जो नंदा पर फिल्मांकित हुए। उनका एक गीत तो बहुत ही याद आता है- ‘’ये समां, समां है ये प्यार का, किसी के इंतज़ार का, दिल ना चुरा ले कहीं मेरा मौसम बहार का।‘’ इसी गीत में अंतरा है-‘’बसने लगे आँखों में कुछ ऐसे सपने, कोई बुलाये जैसे नैनों से अपने, ये समां,समां है दीदार का, किसी के इंतज़ार का, दिल न चुरा ले मेरा मौसम बहार का।‘’

लेकिन सच नहीं हो सके नंदा के सपने

फिल्म ‘जब जब फूल खिले’ का आनंद बक्षी का लिखा यह गीत बरसों से प्रेम के अनेक सपने जगाता आया है। लेकिन जिस अभिनेत्री नंदा पर यह गीत फिल्मांकित हुआ उसके अपने जीवन में प्रेम के सपने कभी सच नहीं हो सके। नंदा ने अपना पूरा जीवन अपने बहन-भाइयों की खुशियों के लिए समर्पित कर दिया। इसलिए आज भी नंदा की कहानी याद कर मन दुखी हो उठता है।

कोल्हापुर में 8 जनवरी 1939 को जन्मी नंदा (Nanda) को इस दुनिया से विदा हुए 11 बरस हो गए हैं। मुंबई में 25 मार्च 1914 को नंदा का निधन हुआ था। इसलिए उनकी पुण्य तिथि पर उनकी कई बातें स्मृतियों में उतर रही हैं। अपने समय के प्रतिष्ठित मराठी परिवार के मास्टर विनायक (Master Vinayak) के यहाँ जब नंदा (Nanda) का जन्म हुआ तो उनका परिवार एक सम्पन्न परिवार था। मास्टर विनायक उस दौर के प्रसिद्द फिल्मकार और अभिनेता थे। लेकिन अगस्त 1947 में विनायक इस दुनिया से कूच कर गए तो हँसता खेलता परिवार यकायक मुसीबतों से घिर गया।

8 साल की उम्र में संभाली परिवार की आर्थिक ज़िम्मेदारी

हालांकि नन्दा (Nanda) अपने 7 बहन भाइयों में सबसे छोटी थीं। लेकिन परिवार में कोई कमाने वाला नहीं था। नन्दा (Nanda) पढ़ना चाहती थीं लेकिन माँ मीनाक्षी के कहने पर, तब नन्दा ने ही इतनी छोटी उम्र में परिवार को आर्थिक समस्याओं से उबारने की ज़िम्मेदारी निभाई। सन 1948 में बाल कलाकार के रूप में 8 साल की बेबी नंदा ने फिल्म ‘मंदिर’ से अभिनय की दुनिया में पहला कदम रखा।

वी शांताराम ने दिया ‘तूफान और दिया’ में मौका

उसके बाद जब नंदा (Nanda) 17 साल की हुई तो उनके चाचा और मशहूर फिल्मकार वी शांताराम ने नंदा को अपनी फिल्म ‘तूफान और दिया’ में मौका दिया। फिल्मों में छोटी छोटी भूमिकाएँ करने के साथ नंदा तब घर में ट्यूशन लेकर पढ़ती भी रहीं और अपने परिवार को भी पालती रही।

कई बड़े नायकों संग बनी जोड़ी

आगे चलकर नंदा ने उस दौर के कई बड़े नायकों के साथ बहुत सी खूबसूरत और यादगार फिल्मों में काम किया। नंदा (Nanda) ने जहाँ देव आनंद (Dev Anand) के साथ तीन देवियाँ, हम दोनों और काला बाजार जैसी फिल्में कीं तो राजेश खन्ना (Rajesh Khanna) के साथ द ट्रेन, इत्तफाक और जोरू का गुलाम। वहीँ शशि कपूर (Shashi Kapoor) के साथ तो नंदा की जोड़ी इतनी जमी कि दोनों ने कुल 8 फिल्मों में काम किया। जिनमें चार दीवारी, जब जब फूल खिले, नींद हमारी ख्बाब तुम्हारे और रूठा ना करो जैसी फिल्में भी हैं।

मनोज कुमार (Manoj Kumar) के साथ भी नंदा ने पहले बेदाग और गुमनाम जैसी फिल्में की तो बाद में शोर भी। नंदा की जोड़ी जीतेंद्र (Jeetendra) के साथ भी पसंद की गयी और इनकी धरती कहे पुकार ने तो सफलता का परचम लहराया। नंदा (Nanda) ने कुल करीब 70 फिल्मों में काम किया जिनमें उनकी लगभग 10 फिल्म बाल कलाकार के रूप में रहीं। नंदा की अन्य प्रमुख फिल्मों में कानून,बेटी,परिवार,अधिकार,पति पत्नी,आँचल,आशिक,नया नशा और नर्तकी हैं। एक अंतराल के बाद नंदा ने चरित्र भूमिकाओं में भी काम किया जिनमें  आहिस्ता आहिस्ता, मजदूर जैसी फिल्में रहीं। सन 1983 में आई राज कपूर कि ‘प्रेम रोग’ तो नंदा की अंतिम फिल्म थी।

जब मनमोहन देसाई से हुई सगाई

नंदा (Nanda) के सामने जब जब शादी के अच्छे प्रस्ताव आये उन्होंने वे इसलिए ठुकरा दिए कि शादी के बाद उनके बहन भाईयों का ध्यान कौन रखेगा। हालांकि बाद में नंदा की जिंदगी में मशहूर फिल्मकार मनमोहन देसाई (Manmohan Desai) का आगमन हो गया। मनमोहन की पत्नी जीवनप्रभा का 1979 में निधन हो गया था। उसके कुछ बरस बाद मन और नंदा (Nanda) की नजदीकियां बढ़ने लगीं। उधर नंदा को भी लगा कि अब उन्होंने अपने परिवार को स्थापित कर दिया है तो उन्होंने देसाई से शादी  की योजना बनायी। लेकिन मनमोहन के अपने परिवार में इस बात को लेकर कुछ विवाद हो गया। फिर भी अंततः 1992 में नंदा और मनमोहन की सगाई हो गयी।

चूर चूर  हो गए नंदा के सपने

देसाई 55 बरस के थे और नंदा 53 बरस की। लेकिन सगाई के कुछ दिन बाद नंदा की मां को कैंसर और बाद में उनका निधन हो गया। ऐसे ही कुछ कारणों से दोनों की सगाई शादी में नहीं बदल सकी। इसके बाद तो मार्च 1994 में  देसाई का ही एक दुर्घटना में निधन हो गया और नंदा के रहे सहे सपने भी चूर चूर हो गए।

इस घटना के बाद नंदा ने खुद को घर में कैद सा कर लिया। यहाँ तक सिर्फ सफेद कपड़े पहनने शुरू कर दिए। इस दौरान वह अपने डॉक्टर से मिलती थीं या अपने भाई जयप्रकाश कर्नाटकी (Jayprakash Karnataki) और भाभी जयश्री टी (Jayshree T.) के परिवार से या फिर वहीदा रहमान (Waheeda Rehman), आशा पारेख (Asha Parekh), साधना (Sadhna) और हेलेन (Helen) जैसी अपनी सहेलियों से। नंदा (Nanda) दोस्ती और रिश्ते निभाने में सदा आगे रहीं। लेकिन दुख इस बात का है कि औरों को खुशियाँ बांटने वाली नंदा खुद पूरी ज़िंदगी खुशियों के लिए तरसती रहीं।

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