मुकेश गर्ग और उनकी पुस्तक ‘मैं और मेरा संगीत’, अपनी पुस्तक का विमोचन समारोह नहीं देख सके खुद लेखक
- प्रदीप सरदाना
वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक
हाल ही में दिल्ली में प्रसिद्द संगीत समीक्षक डॉ मुकेश गर्ग (Dr. Mukesh Garg) की दो नयी पुस्तकें ‘मैं और मेरा संगीत’ (Main Aur Mera Sangeet) तथा ‘संगीत समालोचना’ (Sangeet Samalochna) का लोकार्पर्ण किया गया। लेकिन दुख इस बात का रहा कि 31 अगस्त को हुए अपनी पुस्तकों के इस लोकार्पण कार्यक्रम में स्वयं मुकेश गर्ग (Mukesh Garg) मौजूद नहीं थे।
विधि का विधान देखिये मुकेश गर्ग (Mukesh Garg) इस कार्यक्रम से पूर्व ही 28 अगस्त को इस दुनिया से कूच कर गए। लेकिन गुरु तेगबहादुर इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय कड़कड़डूमा प्रांगण में आयोजित इस कार्यक्रम में मुकेश गर्ग (Mukesh Garg) को शिद्दत से याद किया गया। जिसमें दिल्ली सरकार के मंत्री सौरभ भारद्वाज, सुप्रसिद्द कवि सुरेन्द्र शर्मा (Surender Sharma), अशोक चक्रधर (Ashok Chakradhar), गिरिराज शरण अग्रवाल (Giriraj Sharan Agrawal) और मीना अग्रवाल (Meena Aggarwal) सहित कई गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए।
इसी दिन मुकेश गर्ग (Mukesh Garg) के करीबी पारिवारिक सदस्य अशोक चक्रधर (Ashok Chakradhar) और उनकी पत्नी बागेश्री (Bageshri Chakradhar) ने दिल्ली के हिन्दी भवन (Hindi Bhawan) में उनकी स्मृति में संस्मरण सभा का आयोजन भी किया।
काका हाथरसी के भतीजे थे मुकेश गर्ग
हाथरस में 8 अक्तूबर 1950 को जन्मे मुकेश गर्ग कि एक पहचान यह भी है कि वह सुप्रसिद्द कवि रहे काका हाथरसी के भतीजे भी थे । वह हाथरस से प्रकाशित प्रतिष्ठित मासिक ‘संगीत’ का भी 1974 से 2011 तक सम्पादन करते रहे। संगीत को लेकर जहां उन्होने विभिन्न शोध कार्य किए, वहाँ राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं और आकाशवाणी पर मुकेश गर्ग ने संगीत को लेकर जो समीक्षाएं की वह भी एक दस्तावेज़ बन गयी हैं।
अशोक चक्रधर ने ही लिखी है पुस्तक की भूमिका
हिन्दी साहित्य निकेतन, बिजनौर से प्रकाशित पुस्तक ‘मैं और मेरा संगीत’ भी मुकेश गर्ग के लेखों का एक अनुपम संग्रह है। जिसमें कुल 51 लेख हैं। जिसकी भूमिका अशोक चक्रधर (Ashok Chakradhar) ने ही लिखी है।
कुमार गंधर्व, लता मंगेशकर, जसराज, मन्ना डे सहित एक से एक संगीत हस्ती पर है लेख
इन लेखों में जहां कुमार गंधर्व, पंडित रवि शंकर, पंडित जसराज, गंगूबाई हंगल, अंजनीबाई मालपेकर, उस्ताद अकबर खाँ और अमीर खाँ पर लेख हैं। वहाँ लता मंगेशकर, मदनमोहन, नौशाद, रफी, मन्ना डे, मजरूह सुल्तानपुरी और वाणी जयराम और उनके संगीत को लेकर भी उन्होंने खुलकर अपने दिल की बात कही है।
इनके अतिरिक्त सूरदास और शास्त्रीय संगीत, सारंगी का सम्मान, शास्त्रीय संगीत तेरे कितने नाम, आकाशवाणी का खज़ाना, गुरु पूर्णिमा और संगीत और हिन्दी में विश्वसंगीत का पहला इतिहास जैसे उनके लेख भी पुस्तक को गरिमामय बनाते हैं।
बेहद उपयोगी है पुस्तक
यह पुस्तक शास्त्रीय संगीत और फिल्म संगीत में शोध करने वालों के लिए तो बेहद उपयोगी है ही। साथ ही संगीत में ज़रा भी दिलचस्पी रखने वालों या संगीत को जानने-समझने की जिज्ञासा रखने वालों के लिए भी यह पुस्तक अहम है।