Mohan Rakesh 100th Birthday: मोहन राकेश की बेटी का भी छलका दर्द, महान नाटककार को जन्म शताब्दी पर क्यों भुला दिया?

 

  • प्रदीप सरदाना 

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक 

देश में हिन्दी नाटकों और रंगमंच के इतिहास की बात हो,लेकिन उसमें मोहन राकेश (Mohan Rakesh) की बात न हो तो वह बात अधूरी कहलाएगी। अपने तीन नाटक ‘आधे अधूरे’,‘आषाढ़ का एक दिन’ और ‘लहरों के राजहंस’ के कारण मोहन राकेश नाट्य जगत में अमर हो गए हैं।

हर साल पचासों बार होता है इनके नाटकों का मंचन

आधुनिक हिन्दी नाटक को नया शिखर देने में उनका अप्रतिम योगदान है। हालांकि उन्हें दुनिया से विदा हुए 50 से अधिक बरस हो गए हैं। लेकिन उनके इन तीनों नाटकों का मंचन विभिन्न नाट्य समूहों द्वारा, हर बरस पचासों बार होता है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद जैसे विख्यात नाट्यकारों के साथ उनका नाम सदा आता है। फिर नाम ही क्या उनके दौर को मोहन राकेश युग के नाम से जाना जाता है। लेकिन इस सबके बावजूद मोहन राकेश (Mohan Rakesh) को आज भुला सा दिया, यह देख बहुत दुख हुआ। दिल में एक टीस भी उठी।

मोहन राकेश की 100 वीं जयंती

गत 8 जनवरी को मोहन राकेश (Mohan Rakesh) की 100 वीं जयंती थी। लेकिन इस महान नाटककार के जन्म शताब्दी के बेहद खास मौके पर किसी नाट्य या साहित्यिक संस्थान ने उन्हें याद तक नहीं किया। यहाँ तक संगीत नाटक अकादमी और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) जैसे बड़े संस्थान भी इस दिन मौन रहे।

जबकि 1968 में वह संगीत नाटक अकादमी सम्मान से सम्मानित भी हुए। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (National School of Drama) की तो वह प्रमुख समितियों में भी रहे। इसलिए इन संस्थानों द्वारा ‘मोहन राकेश जन्म शताब्दी दिवस’ को गर्व के साथ, ज़ोर शोर से मनाना चाहिए था। उनके नाटकों के विशेष शो हों,उन पर गोष्ठियाँ हों। यहाँ तक उन पर एक डाक टिकट भी जारी होना चाहिए। लेकिन ऐसा कुछ 8 जनवरी को तो हुआ नहीं। निकट भविष्य में भी ऐसे किसी विशेष आयोजन के संकेत अभी तक कहीं से नहीं मिले हैं।

पूर्वा राकेश

जन्म शताब्दी पर कोई विशेष आयोजन नहीं हुआ

इस सबको लेकर मोहन राकेश (Mohan Rakesh) की बेटी पूर्वा राकेश की पीड़ा भी छिप नहीं सकी है। मैंने पूर्वा से बात की तो वह बताती हैं-‘’जब पापा का निधन हुआ तब मैं सिर्फ 5 साल की थी। लेकिन पिछले वर्षों में मैंने अनेक बार देखा कि उन्हें आज भी लोग कितना सम्मान, कितना प्यार देते हैं। उनकी सोच समय से बहुत आगे थी। उनका योगदान बेमिसाल है। इसलिए मुझे उनके ना रहने की जितनी उदासी और जितना दर्द है। उतनी खुशी और गर्व इस बात का है कि मैं उनकी बेटी हूँ। लेकिन मुझे अब अत्यंत दुख के साथ हैरानी भी हुई कि उनकी जन्म शताब्दी पर कोई विशेष आयोजन तक नहीं हुआ। कोई नाट्योत्सव नहीं हुआ।‘’

मोहन राकेश का परिवार के साथ पुराना चित्र

साहित्य और नाट्य जगत को अमूल्य धरोहर सौंप गए हैं

पंजाब के अमृतसर में 8 जनवरी 1925 को जन्मे मोहन राकेश (Mohan Rakesh) का 3 दिसंबर 1972 को दिल्ली में निधन हो गया था। लेकिन अपनी 47 बरस की इस ज़िंदगी में भी राकेश (Mohan Rakesh) अपनी अनुपम कृतियों से साहित्य और नाट्य जगत को अमूल्य धरोहर सौंप गए हैं। उनके उपन्यास- अंधेरे बंद कमरे, अंतराल, ना आने वाला कल हों या उनके कहानी संग्रह –इंसान के खंडहर, एक और ज़िंदगी, वारिस, पहचान और नए बादल। यहाँ तक उनके एकांकी- अंडे के छिलके और बहुत बड़ा सवाल को भी सराहा गया। उन्होंने ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ जैसी कुछ कालजयी कृतियों का हिन्दी अनुवाद भी किया।

वर्ष भर याद करने के कई आयोजन होने चाहिएं

इनके अलावा निबंध संग्रह और यात्रा वृतांत भी उनके साहित्यिक खाते में हैं। सही अर्थों में मोहन राकेश (Mohan Rakesh) जैसे लेखक और नाटककार बड़ी मुश्किल से, कभी कभार ही मिलते हैं। इसलिए यदि अभी उन्हें भुला दिया गया है तो आगे वर्ष भर उन्हें याद करने के कई आयोजन होने ही चाहिएं। कुछ आयोजन सरकार के माध्यम से हों तो कुछ उन विभिन्न नाट्य समूहों द्वारा भी जो मोहन राकेश (Mohan Rakesh) के नाटकों का बरसों से लगातार मंचन करते आए हैं।

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