Naushad Death Anniversary: कभी नौशाद के ‘आशियाना’ में बैडमिंटन खेलते थे रफी और दिलीप कुमार

- प्रदीप सरदाना
वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक
प्यार किया तो डरना क्या, मेरा प्यार भी तू है, सुहानी रात ढल चुकी, मेरे महबूब,मधुबन में राधिका नाचे रे, न आदमी का कोई भरोसा,मुझे दुनिया वालो शराबी न समझो, आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले और ये ज़िंदगी के मेले दुनिया में कम न होंगे। ये और इन जैसे कई और गीतों को अपनी धुनों से अमर करने वाले नौशाद ने 5 मई 2006 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। जिससे उनके निधन को अब 19 साल हो चले हैं। लेकिन उनके गीतों की धुनों की गूंज आज भी है और कल भी रहेगी। वह अपने चाहने वालों के दिलों में बसे हैं। उनसे मेरी जब भी मुलाक़ात हुई उनकी बातें दिल छू लेती थीं। उनके पास अनेक यादों का खजाना था। उनमें से बहुत सी यादें उनके पुत्र रहमान नौशाद भी अपने दिल में सँजोये हैं।
नवाबी शहर लखनऊ में 25 दिसम्बर 1919 को जिस परिवार में नौशाद का जन्म हुआ, वहाँ संगीत का नाम लेना भी पाप समझा जाता था। इसके बावजूद नौशाद ने अपने बल बूते पर संगीत को इबादत बनाकर संगीत की दुनिया ही बदल दी। हालांकि इसके लिए नौशाद को कड़ी मेहनत और लंबा संघर्ष करना पड़ा। कितनी ही रातें उन्होंने फुटपाथ पर गुजारीं। लेकिन एक दिन भारतीय सिनेमा के ऐसे संगीतकार बने जिनके संगीत को अपनी फिल्मों में लेना बड़े बड़े फ़िल्मकारों का अरमान होता था।
बाद में फुटपाथ पर सोने वाले नौशाद ने मुंबई के कार्टर रोड पर अपना एक बंगला ‘आशियाना’ बनाया जहां कभी रात से सुबह तक संगीत की महफिल लगती थी। तो सुबह सवेरे उसी ‘आशियाना’ में दिलीप कुमार, राजेन्द्र कुमार, जीवन और मोहम्मद रफी जैसे दिग्गज बैडमिंटन खेलने आते थे। नौशाद खुद तो बैडमिंटन खेलने के शौकीन थे ही। उनकी दिलीप कुमार, रफी और राजेन्द्र कुमार से ऐसी दोस्ती थी कि ये सभी सुबह सवेरे नौशाद साहब के घर आ जाते, पहले बैडमिंटन खेलते और फिर चाय पीकर अपने घरों को या शूटिंग और रिकॉर्डिंग के लिए निकल जाते। ये सिलीसिला काफी समय तक चलता रहा।
नौशाद ने दिलीप कुमार की तो करीब 15 फिल्मों का संगीत दिया ही। साथ ही गीतकार शकील बंदायूनी और गायक रफी के साथ उनकी खूब जमी। इधर यह संयोग है कि रफी जैसे लाजवाब गायक जिन्हें पहली बार नौशाद ने ही ब्रेक दिया, उनका जन्म दिन नौशाद से एक दिन पहले 24 दिसंबर को होता है।
नौशाद के बड़े बेटे रहमान नौशाद बताते हैं-‘’रफी साहब उनके दादा वाहिद अली का सिफारशी खत लेकर नौशाद साहब से मिले थे। नौशाद साहब ने रफी साहब की प्रतिभा देखी तो वह दंग रह गए। उसके बाद दोनों का साथ ऐसा बना कि इतिहास रच गया।‘’ रहमान नौशाद जो खुद भी ‘तेरी पायल मेरे गीत’ जैसी कुछ फिल्मों का निर्देशन भी कर चुके हैं। बताते हैं-‘’ऐसा कितनी ही बार होता रहा कि एक ही संगीत महफिल में रफी साहब और नौशाद साहब के जन्म दिन साथ साथ मनाए गए।‘’
नौशाद ने अपने करीब 65 बरस के फिल्म करियर में 65 फिल्मों का संगीत दिया। जिसमें रत्न, अंदाज, मेला, मदर इंडिया, मुगल ए आजम, गंगा जमुना, दिल लिया दर्द लिया, राम और श्याम, मेरे महबूब, संघर्ष, साथी, गंवार और धर्मकांटा भी शामिल हैं।
यहाँ तक भारत भूषण, मीना कुमारी की उस सुपर हिट फिल्म ‘बैजू बावरा’ का संगीत भी नौशाद ने ही दिया, जिसके गीत ‘ओ दुनिया के रखवाले’ ने रफी को नयी बुलंदियों पर पहुंचाया। नौशाद के संगीत की सबसे बड़ी बात यह भी रही कि उन्होंने शास्त्रीय संगीत का भरपूर इस्तेमाल करते हुए लोकप्रिय धुनों की रचना की। सच पदमभूषण और दादासाहेब फाल्के सम्मान जैसे सर्वोच्च सम्मान पाने वाले नौशाद की बात ही कुछ और थी।
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