Maharaja Arut: प्रभु श्री राम की आठवीं पीढ़ी में जन्मे थे महाराजा अरूट, बेहद दिलचस्प है जीवन गाथा

झेलम, चिनाब ,रावी, सतलज ,व्यास ,सरस्वती एवं सिंधु नदी का क्षेत्र खत्री एवं अरोड़ा जाति का क्षेत्र माना जाता है इसी में सिंधु नदी के किनारे बसे अरोड कोट या अरोड़ी थारोहड़ी को अरोड़ा जाति का प्रसिद्ध शहर माना गया है। इसी क्षेत्र के प्रसिद्ध राजा थे महाराजा अरूट यह क्षेत्र वर्तमान में सिन्ध के सख्खर जिले के अंदर आता है। यहीं परसिन्ध की सरकार ने अरोड़ कोट के इतिहास को मान्यता देते हुए “The Aror University of Art ” Architecture Design and herritage , सिन्ध की विधानसभा ने इसे 2018 में मंजूरी दी।
अरोड़ कोट भारत के प्राचीन इतिहास में एक विशेष महत्व रखता है। इसी के ऐतिहासिक स्वरूपों को जानने का प्रयास अब सिन्ध की सरकार भी कर रही है।
महाराज अरूट- महाराज अरुट के बारे में इतिहासकार कहते हैं कि महाराजा अरूट अपने नाम के अनुरूप ही क्रोध अहंकार वह ईर्ष्या से रहित थे इसलिए उन्हें अरूट कहा गया अरोड कोट इन्हीं महाराज अरूट की राजधानी थी जिनका राज्य कश्मीर से मकरान और कंधार से सूरत तक फैला हुआ था। सिकंदर के समय में महान लेखक प्लिनी ने अपने लेखो से अरोड़ जाति को अरोटरी क्षत्रिय लिखा।
ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री राम के पुत्र लव ने जब लाहौर पर राज्य किया तो उन्हीं के वंश में राजा कालराय हुए। महाराज अरूट इन्हीं कालराय के वंशज है महाराज अरुट को प्रभु श्री राम की वंशावली में आठवीं पीढ़ी में स्थान दिया गया है। भविष्य पुराण के जगत प्रसंग के अध्याय में दिए गए एक श्लोक जो निम्न प्रकार है।
“नागवंशोद्भव दिव्याः क्षत्रियाः सम मुदाहताः ब्रह्मवंशोद्भवश्चन्ये तथा ऽरूट वंश संभवा।” यह श्लोक भविष्य पुराण के 15वें अध्याय में मिलता है जिसमें क्षत्रियों के विभाजन में अरोड़ वंशियों को श्रेष्ठ क्षत्रिय बताया गया है।
महाराजा अरूट उन क्षत्रियों में विशेष स्थान प्राप्त है जिन्हें भगवान परशुराम का अभय दान प्राप्त हुआ जिनमें आध्यात्मिक तेज के कारण इतिहास की श्रुति परंपरा में उन्हें एक प्रतापी एवं महान राजा बताया गया है जिनका जन्म दिवस परंपरागत रूप से 30 मई को मनाया जाता है।
महाभारत के वन पर्व में पृथ्वी एवं महर्षि कश्यप की वार्ता आती है जिससे यह स्पष्ट होता है कि परशुराम जी ने जब चंद्रवंशी क्षत्रियों का संहार प्रारंभ किया तो अरुट नामक एक सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा को अभयदान दिया और उन्हें सिन्ध में अपने राज्य की स्थापना के लिए कहा इस नगर का नाम अरुट पड़ा जो सिकंदर के समय में अलोर कोट के नाम से जाना जाता था अलोर कोटका किला महाराजा अरुट ने इस प्रकार बनाया था कि इसकी स्थापत्य कला विश्व भर में प्रसिद्ध थी।
इस स्थान से पूरे विश्व मे निर्यात का कार्य किया जाता था फल स्वरूप बख्खर ओर सख्खर के साथ अरोड़ कोट भी भारत का एक महत्वपूर्ण व्यापारी शहर बन गया।
इसी अरोड़ कोट में महाराज अरुट द्वारा दो सुरंगे बनाई गई जिससे होकर सीधे मां हिंगलाज के दर्शन हेतु महाराज अरुट जाया करते थे ये सुरंगे आज भी विद्यमान है जहां अब काली माता का मंदिर बना हुआ है।