रामभद्राचार्य को एक बार सुनते ही सब हो जाता है कंठस्थ, इनका काम देख बड़ी बड़ी आंखों वालों की भी आंखें रह जाती हैं खुली, अनुपम दिव्य दृष्टि वाले इन जगदगुरु की बात ही कुछ और है

  • प्रदीप सरदाना 

   वरिष्ठ पत्रकार 

हाल ही में जगद्गुरू स्वामी रामभद्राचार्य जी (Jagadguru Ramanandacharya) से एक यादगार मुलाक़ात हुई। वह राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु जी (Droupadi Murmu) से ज्ञानपीठ पुरस्कार लेने के लिए दिल्ली आए तो उन्हें देखने, सुनने और उनसे मिलने के लिए लोगों का उत्साह देखते ही बनता था। ज्ञानपीठ साहित्य जगत का शिखर पुरस्कार है। ज्ञानपीठ का यह 58 वां पुरस्कार समारोह था। रामभद्राचार्य को ज्ञानपीठ का यह सम्मान उनके संस्कृत साहित्य के समग्र योगदान के लिए दिया गया है। हालांकि ज्ञानपीठ इनसे पहले 2006 में सत्यव्रत शास्त्री को भी संस्कृत साहित्य के लिए सम्मानित कर चुका है। लेकिन रामभद्राचर्या ऐसे पहले संत हैं जिन्हें ज्ञानपीठ मिला है।

60 बरसों से लेखन में नित नए आयाम बना रहे हैं

इसलिए कुछ लोग इस बात से व्यथित भी हैं कि आखिर एक संत को, सनातन के मुखर प्रवक्ता, आध्यात्मिक पुस्तकों, महाकाव्यों के रचयिता को ज्ञानपीठ जैसा पुरस्कार आखिर क्यों मिल गया। लेकिन ये लोग भूल जाते हैं कि विश्व का सबसे प्राचीन साहित्य सनातन के पवित्र वेद ग्रंथ, धर्मशास्त्र और रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्य हैं। इधर आधुनिक काल में दृष्टि बाधित होते हुए भी रामभद्राचार्या जी (Jagadguru Ramanandacharya) करीब 60 बरसों से लेखन में जिस तरह नित नए आयाम बना रहे हैं।

आधुनिक युग का तुलसी भी कहा जाता है

महाकाव्य, गीत काव्य, खंड काव्य सहित धर्मशास्त्र पर विभिन्न पुस्तकें लिख रहे हैं, वह सब अद्धभुत है। इसीलिए उन्हें आधुनिक युग का तुलसी भी कहा जाता है। रामभद्राचार्य जी (Jagadguru Ramanandacharya) की जीवन यात्रा बेहद प्रेणादायक है। उनके बालपन में बड़े कष्ट रहे। फिर भी अपनी संघर्ष, आत्म शक्ति और योग्यता से उन्होंने अपार उपलब्धियां पाकर ऐसा इतिहास रच दिया, जिसकी मिसाल युगों तक रहेगी।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु से ज्ञानपीठ पुरस्कार लेते हुए जगद्गुरू रामभद्राचार्य

उनके काम को देख बड़ी बड़ी आंखों वालों की आंखें भी रह जाती हैं खुली

रामभद्राचार्य जी (Jagadguru Ramanandacharya) के जीवन को देखें तो 14 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर में जन्मे गिरिधर मिश्र जब सिर्फ दो माह के थे तभी उनकी नेत्र ज्योति चली गयी। पिता राजदेव मिश्र और माँ शची देवी ने अनेक उपचार कराये लेकिन समस्या जस की तस रही। लेकिन प्रभु श्रीराम ने उन्हें ऐसी दिव्य दृष्टि दी कि रामभद्राचार्य के  काम-काज को देख बड़ी बड़ी आंखों वालों  की आंखें भी खुली रह जाती हैं। रामभद्राचार्य (Jagadguru Ramanandacharya) बताते हैं-तीन वर्ष की उम्र में ही मेरा आध्यात्मिक जीवन आरंभ हो गया था। पाँच वर्ष का होते होते मुझे सम्पूर्ण भगवदगीता और 7 वर्ष का होने पर सम्पूर्ण श्री रामचरितमानस कंठस्थ हो गयी थी।‘’

4 संस्कृत महाकाव्य सहित 250 पुस्तकें लिख चुके हैं

जगदगुरू (Jagadguru Ramanandacharya) अब तक 4 संस्कृत महाकाव्य सहित संस्कृत और हिन्दी में लगभग 250 पुस्तकें लिख चुके हैं। बड़ी बात यह भी है कि वह ब्रेल लिपि से न लिखकर बोलकर लिखवाते हैं। उनकी स्मरण शक्ति इतनी अनुपम है कि किसी भी ग्रंथ का कोई भी श्लोक उन्हें एक बार पढ़ने या लिखने का बाद कंठस्थ हो जाता है। अपनी इस यात्रा में गुरुजी ने स्वयं तो उच्च शिक्षा ग्रहण की ही।

सन 1987 में चित्रकूट में तुलसी पीठ कि स्थापना भी की। साथ ही अगस्त 1995 में गिरिधर मिश्र का जगदगुरु रामानन्दचार्या (Jagadguru Ramanandacharya) के रूप में अभिषेक किया तो वह जगदगुरु स्वामी रामभद्राचार्य बन गए। इसके बाद सितंबर 2001 में उन्होंने चित्रकूट में ‘जगदगुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय’ की स्थापना की। रामभद्राचार्य (Jagadguru Ramanandacharya) को साहित्य अकादेमी और पदमविभूषण जैसे शिखर पुरस्कार के बाद अब ज्ञानपीठ मिलना उनके जीवन की एक और बड़ी उपलब्धि है।

वरिष्ठ पत्रकार-लेखक प्रदीप सरदाना को आशीर्वाद देते हुए जगद्गुरू रामभद्राचार्य

जगदगुरु से भेंट हुई तो मिलकर आनंद आ गया

अभी जब जगदगुरु (Jagadguru Ramanandacharya) से भेंट हुई तो उनसे मिलकर आनंद आ गया। सच कहें तो संस्कृत और धर्मशास्त्रों के इन महान विद्वान रचनाकार और दार्शनिक रामभद्राचार्य से मिलकर, बात करके एक अलग ही सुखद अनुभूति होती है। उनकी सहजता, नम्रता और ज्ञान देख उनके प्रति सम्मान और बढ़ जाता है। फिर जब वह मुझसे बात करते हुए कहते हैं, ‘’प्रदीप जी आप तो मेरे मित्र हैं’’ तो प्रसन्नता भी बढ़ जाती है।

हर दिन 2 लाख बार राम नाम जपते हैं  

देखा जाए तो रामभद्राचार्य (Jagadguru Ramanandacharya) भगवान राम के अनूठे भक्त हैं। वह बात करते करते भी बीच बीच में राम नाम का जाप करते रहते हैं। मैंने उनसे पूछा आपको भगवान राम का कौनसा स्वरूप अधिक प्रिय है और आप दिन भर में राम नाम का कितना जाप कर लेते हैं? इस पर गुरु जी बताते हैं- ‘’मैं हर दिन दो लाख बार राम नाम जपता हूं। जहां तक राम जी के सर्वप्रिय स्वरूप की बात है तो मुझे उनका  रामलला का बाल स्वरूप अधिक प्रिय है। लेकिन उनके सभी स्वरूप अच्छे लगते हैं। उनका वीर स्वरूप तो अद्भभुत है। भगवान राम न तो स्वयं कभी हारते हैं और न अपने भक्तों को हारने देते हैं।

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