डीडी न्यूज़ का ब्रांड शो बन गया है ‘दो टूक’, होस्ट अशोक श्रीवास्तव के अंदाज़ ने भी बदल दिया इतिहास

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म-टीवी समीक्षक

डीडी न्यूज़ (DD News) के डिबेट शो ‘दो टूक’ (Do Took) ने हाल ही में अपने प्रसारण के 7 साल पूरे कर लिए हैं। बड़ी बात यह है कि एक छोटे कार्यक्रम के रूप में शुरू हुआ ‘दो टूक’ आज डीडी न्यूज़ का सबसे बड़ा और सर्वाधिक लोकप्रिय कार्यक्रम बन गया है।

किसी समय दूरदर्शन (Doordarshan) को सरकारी भौंपू कहा जाता था। क्योंकि दूरदर्शन के समाचारों में सिर्फ और सिर्फ सरकारी उपलब्धियों, घोषणाओं और सरकार के पक्ष की बात होती थी। समाचारों में डिबेट का तो कोई कार्यक्रम होता ही नहीं था। समाचारों में भी विपक्षी दलों के समाचार बस खाना पूर्ति के लिए होते थे। लेकिन सात साल पहले डीडी न्यूज़ पर शुरू हुए ‘दो टूक’ ने पुराने हालात बदल कर एक नया इतिहास लिख दिया है।

यह डीडी न्यूज़ का पहला डिबेट शो तो है ही। साथ ही इस शो में सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष के तमाम दलों को अपने डिबेट में बुलाने से, इस शो की ही नहीं, डीडी न्यूज़ की साख भी बनी है। फिर इस शो के होस्ट अशोक श्रीवास्तव (Ashok Shrivastav) इसको इतने अच्छे और संतुलित ढंग से पेश करते हैं कि यह दर्शकों का सबसे पसंदीदा न्यूज़ शो होने के साथ दूरदर्शन का ब्रांड शो बन गया है।

मैं दूरदर्शन को 1980 के दौर से करीब से देख रहा हूँ। तभी मैंने देश में टीवी पर पत्रकारिता की नियमित पत्रकारिता शुरू कर,पत्रकारिता जगत में एक नया अध्याय आरंभ किया था। असल में तब तक दूरदर्शन दर्शकों से काफी दूर था। देश में टीवी सेट्स की संख्या तो बहुत कम थी ही। देश में तब दूरदर्शन की पहुँच भी मात्र 13.5 प्रतिशत क्षेत्र में थी। यह जानकार आज बहुत लोगों को आश्चर्य होगा कि आज 24 घंटे के अनेक चैनल्स हैं। लेकिन 1980 में जब दूरदर्शन का सिर्फ एक ही चैनल होता था, तब पूरे सप्ताह में सिर्फ 30 घंटे का प्रसारण होता था। अर्थात प्रतिदिन औसतन 4 घंटे से कुछ अधिक का प्रसारण। इसी प्रसारण में रविवार की फिल्म,चित्रहार के साथ कृषि दर्शन,नृत्य,संगीत, कला,संस्कृति,शिक्षा,स्वास्थ,साहित्य के कार्यक्रम शामिल थे और न्यूज़ बुलेटिन भी।

इसलिए उस दौर में टीवी पर नियमित पत्रकारिता की बात सोचना भी अजीब  था। लेकिन मैंने 1982 के आते आते यह समझ लिया था कि टीवी जल्द ही देश में क्रान्ति कर देगा। इसलिए क्यों ना अभी से दूरदर्शन पर कुछ नियमित लिखा जाये,जिससे दर्शक दूरदर्शन की नीतियों,योजनाओं और कार्यक्रमों को समझने की आदत डाल लें। मेरा यह प्रयोग बेहद सफल हुआ। यह सफर मैंने अकेले शुरू किया था। लेकिन 1992 आते आते देश में टीवी पर पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों की फौज खड़ी हो गयी थी।

यहाँ यह सब बताने का अभिप्राय यह भी है कि दूरदर्शन तब कितना सिमटा और संकुचित था। उस दौर में दूरदर्शन में विपक्षी दलों के नेताओं की ‘नो एंट्री’ थी। विपक्षी नेताओं को किसी कार्यक्रम में बुलाना तो दूर,यदि किसी कार्यक्रम में किसी ने किसी विपक्ष के नेता का जरा भी गुणगान कर दिया तो उसकी तुरंत बड़ी क्लास लग जाती थी। कभी उस व्यक्ति से वह कार्यक्रम छीन लिया जाता था। कभी उस व्यक्ति का तबादला किसी दूर दराज के केंद्र पर कर दिया जाता था।

इतना ही नहीं कितनी बार तो मैंने देखा कि उन फिल्म सितारों की कुछ फिल्मों का प्रसारण अंतिम समय में रोक दिया जाता। जो विपक्षी दलों में नेता होते थे या विपक्ष के बहुत ज्यादा करीब होते थे। यह सिलसिला बहुत बाद तक चलता रहा। मुझे दिसंबर 1989 की एक घटना याद आ रही है। जब विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने। तब पहले से ही रविवार को अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘मिली’ का प्रसारण शेड्यूल बना हुआ था। लेकिन तब अमिताभ बच्चन राजीव गांधी के खास दोस्त थे, तो सरकार बदलते ही दूरदर्शन ने ‘मिली’ का प्रसारण रोक दिया।

दूरदर्शन के साथ आकाशवाणी (Akashvani) पर भी यही हाल था। जहां किशोर कुमार के गाने और देव आनंद की फिल्मों के गीतों का प्रसारण कुछ समय के लिए सिर्फ इसलिए रोक दिया गया क्योंकि इन्होंने दिल्ली में संजय गांधी द्वारा आयोजित ‘गीतो भरी शाम’ में आने से इंकार कर दिया था। यह प्रतिबंध आकाशवाणी के सात-साथ दूरदर्शन पर भी था। लेकिन आज जब मैं ‘दो टूक’ देखता हूँ या इसकी डिबेट में खुद कभी शामिल होता हूँ तो हैरान रह जाता हूँ। विपक्षी दल के नेताओं को डिबेट में सिर्फ बुलाया ही नहीं जाता,उन्हें अपनी बात पूरी तरह रखने का मौका दिया जाता है। विपक्ष,सत्ता पक्ष के नेताओं और विभिन्न मंत्रियों को ही नहीं पीएम मोदी को भी दिल भर कर कोसता है।

कई बार तो कुछ विपक्ष के नेता कोरा झूठ बोलकर लोगों को भ्रम में डालने का प्रयास करते हैं। लेकिन उन्हें तब भी अपनी बात पूरी करने का मौका दिया जाता है। उसके बाद उनके झूठ को बताया जाता है। ठीक ऐसा ही सत्ता पक्ष के नेताओं-प्रवक्ताओं के साथ भी होता है। यदि सत्ता पक्ष या सत्ता पक्ष के समर्थक में से कोई गलत टिप्पणी करता है तो उसे भी आईना दिखा दिया जाता है।

‘दो टूक’ के साथ अब डीडी न्यूज़ के डिबेट के अन्य कार्यक्रमों में भी वक्ताओं की ऐसी आज़ादी साफ देखी जा सकती है। हालांकि डीडी न्यूज़ के यह बोल्डनेस दो चार महीनों में या यूं ही नहीं आई। इसमें जहां सरकार की नीतियों और  डीडी न्यूज़ के महानिदेशक का हाथ है, वहाँ इस शो के होस्ट अशोक श्रीवास्तव की भी इसमें बेहद अहम भूमिका है।

डीडी न्यूज़ पर ‘दो टूक’ की शुरुआत की कहानी भी दिलचस्प है। श्रीवास्तव बताते हैं-‘’दूरदर्शन के साथ यूं मैं 20 बरस से हूँ। लेकिन जब 7 बरस पहले जेएनयू में देश विद्रोही लोगों ने देश के टुकड़े टुकड़े होने के नारे लगाए तो मुझे बहुत दुख हुआ। मैं तब तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री अरुण जेटली जी से मिला। मैंने उनसे कहा,मैं चाहता हूँ इसमें एक डिबेट शो हो। जिसमें सभी अपनी बात रख सकें। जेटली साहब मेरी बात से सहमत हुए। उन्होंने तत्कालीन सूचना प्रसारण राज्य मंत्री राज्य वर्धन राठोड़ जी से कहा इन्हें एक ऐसा कार्यक्रम दे दीजिये।‘’

‘’बस तभी से ‘दो टूक’ की शुरुआत हो गयी। पहले इसे हफ्ते में दो दिन का प्रसारण समय मिला। फिर तीन दिन का। उसके बाद इसकी लोकप्रियता देख इसे सोमवार से शुक्रवार,सप्ताह में 5 दिन कर दिया गया।मैं इसकी लोकप्रियता से अभिभूत हूँ। रात 9 बजे दर्शक इस शो का इंतज़ार करते हैं। लेकिन मुझे खुशी इस बात की भी है कि मुझे इसमें विपक्ष को बुलाने के लिए कभी किसी ने रोका नहीं। कभी मंत्रालय या आला अधिकारियों ने यह नहीं कहा कि वो विपक्ष का नेता सरकार के खिलाफ इतना बोल गया। उसे मत बुलाओ।‘’

इन पिछले सात बरसों में ‘दो टूक’ के करीब 1400 एपिसोड प्रसारित हो चुके हैं। अशोक श्रीवास्तव इसे नियमित होस्ट करते हैं। सभी प्रतिभागियों से शिष्टाचार से बात करते हैं। डिबेट में हो हल्ला,शोर शराबा नहीं होता। हाँ डिबेट में कोई गलत बात करने से न रुके तो अशोक उसे पहले प्रेम, शांति से चेताते हैं। लेकिन यदि कोई उस पर नहीं सुनता तो तब वह अपने तेवर दिखाने में भी  पीछे नहीं रहते। अशोक कहते हैं- इन 7 बरसों में मुश्किल से कुल10-15 मौके ऐसे आए होंगे,जब मैं रिपोर्टिंग पर दिल्ली से बाहर होने पर,इसे पेश नहीं कर सका। अन्यथा मैंने कभी कोई अवकाश नहीं लिया।‘’

देखा जाये तो ‘दो टूक’ विपक्ष के उस झूठ की भी कलई खोलता है, जो देश ही नहीं विदेश की धरती पर भी यह कहते नहीं थकते कि मोदी राज में हमको बोलने नहीं दिया जाता। विपक्षी आज ‘दो टूक’ में जिस तरह बिना टोके,बिना रुके कुछ भी बोलते हैं,वैसी पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।

 

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