Diwali 2024: दीपावली श्रीराम के महान व्यक्तित्व के साथ सनातन संस्कृति का भी बोध कराती है
- स्वामी रामस्वरूप, योगाचार्य
दीपावली का पर्व कई कारणों से मनाया जाता है। पहला यह कि इस दिन श्रीरामचंद्र जी लंका विजय कर और चौदह वर्षों का बनवास काटकर अयोध्या लौटे थे। इस दिन ही जैन मत के चौबीसवें तीरंथकर भगवान महावीर स्वामी को निर्वाण प्राप्त हुआ था। सिखों के छठें गुरु श्री हरगोबिंद सिंह जी महाराज भी इसी दिन चालीस दिन तक नजरबंद रहने के बाद अमृतसर पधारे थे।
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती जी को भी इसी दिन निर्वाण प्राप्त हुआ था। इसी मास में ऋतु परिवर्तन भी होता है। वर्ष काल समाप्त होकर शरद ऋतु और साथ ही नई फसलों का आगमन भी इसी मास में होता है। दीपावली पर्व को मनाने की तैयारियां बहुत दिन पहले ही आरंभ हो जाती है।
घर आंगन की सफाई रंग, रोगन और सजावट होती है। लोग एक दूसरे को खील,बतासे, मिठाईयां बांट कर इस पर्व पर प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। इससे भाईचारा बढ़ता है। परंतु यहां यह समझना होगा कि यह केवल भौतिकवाद का ही प्रदर्शन है जबकि वेदों में भौतिकवाद और आध्यात्मिकवाद, दोनों की साथ साथ उन्नति करना आवश्यक कहा है। अन्यथा जीवन दुःखमय हो जाता है।
इस विषय में अथर्ववेद मंत्र 11/3(1)/31 में कहा है- आध्यात्मिकवाद के अभाव में केवल भौतिकवाद की चमक-दमक पाप युक्त एवं दिशाहीन होगी। कई कारणों से स्पष्ट भी होता है कि इस पवित्र दिवस पर मदिरा आदि का सेवन, कहीं कहीं लड़ाई झगड़ा होना तथा आवश्यक्ता से अधिक प्रदूषण वाले पटाखे आदि छोड़कर केवल नर-नारी, छोटे-बड़े बच्चे ही नहीं अपितु, पशु-पक्षी आदि सभी के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है।
असल में दीपावली का पवित्र पर्व हमें अपनी सनातन संस्कृति की याद दिलाता है। वैदिक वाल्मीकि रामायाण के अनुसार इस पवित्र दिन पर श्रीराम उस समय के अति आधुनिक पुष्पक विमान पर सवार होकर आकाश मार्ग से लक्ष्मण, सीता, विभीषण, हनुमान, सुग्रीव एवं अन्य लंका के योद्धाओं सहित अयोध्या पहुंचे थे।
श्रीराम के आगमन के समय सभी नगरवासी, सैनिक आदि निश्चित स्थान पर पहुंचे। धर्मात्मा भरतजी अपने सिर पर श्रीराम की चरण पादुकाएं रखे हुए, उपवास के कारण दुर्बल शरीर वाले और काले मृग का चरम पहने हुए मंत्रियों सहित श्रीरामजी के स्वागत के लिए पैदल ही चल दिए। कुछ ही समय में श्रीराम का अत्यंत तीव्रगामी व श्रेष्ठ विमान पृथ्वी पर उतरा। श्रीराम ने भरत जी को उस विमान में बैठा लिया। भरत अत्यंत प्रसन्न हुए और नम्रतापूर्वक उन्होंने श्रीराम को प्रणाम किया।
चिरकाल के पश्चात भरत जी को देख श्रीराम अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने भरत जी का आंलिगन किया। श्रीराम अपनी माताओं सहित सबसे प्रेमपूर्वक मिले। उस समय अयोध्या वासियों ने अपने घरों पर पताकाएं लगाई थीं और सजावटें की हुई थीं।
दीवाली के शुभ अवसर पर हमें यह प्ररेणा लेनी है कि हम सभी मनुष्य जातिवाद, ऊंच-नीच, दलित आदि सभी इस घातक बुराईयों का त्याग कर श्रीराम, हनुमान आदि के वक्तव्यों के अनुसार सब आपस में गले मिलें और खुशियां मनाएं। फलस्वरूप ही दीवाली का पर्व श्रीराम के जीवन से संबंधित और वैदिक संस्कृति के अनुकूल सदा खुशियां बरसाने वाला पवित्र दिवस बनेगा।
दीपावली का अर्थ है-दीपों की पंक्तियां। अतः यह प्रकाश करने का त्यौहार है। भारतीय संस्कृति में- ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’
(तमरू) अंधकार (मा) नहीं (ज्योतिः) ज्योति की (गमय) ओर जाएं। अर्थात अंधकार से ज्योति की ओर तथा असत्य से सत्य की ओर जाने का महत्व है जहां दीपावली अमावस्या की गहन रात्रि के अंधकार को उजाले में परिवर्तित करती हुई अज्ञानरूपी अंधकार को मिटाकर, ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर जाने का संदेश भी दे रही है।
दीपावली हमें प्रति वर्ष श्रीराम के महान व्यक्तित्व की याद दिलाती है। सनातन वैदिक दृष्टि के अनुसार इसमें असत्य नाम की कोई चीज नहीं है। ऋग्वेद मंत्र 7/104/14 का भाव है कि झूठ बोलने वाले और झूठ मानने वाले अपराधी हैं तथा वह ईश्वर द्वारा दंड के पात्र बनते हैं। यजुर्वेद मंत्र 1/5 का भी भाव यह है कि हे प्रभु! मै आपकी कृपा से सत्य धर्म का ही पालन करुं। श्रीराम का जीवन केवल सत्य पर आधारित है। उन्होंने वेद विद्या के अनुसार जीवन यापन किया था। इसलिए तुलसी दास जी ने भी उन्हें कहा- ‘श्रुति पथ पालक धर्मधुरंदर’ अर्थात् श्रीराम श्रुति (वेद) के जानने वाले, धर्म के ज्ञाता थे।
वाल्मीकि रामायण यह प्रमाणित करती है कि वाल्मीकि जी श्रीराम के समय कालीन थे। अतः श्रीराम एवं उनके पिता राजा दशरथ सहित समस्त परिवार तथा राज्य का सत्य एवं अतिसुंदर वर्णन तो ऋषि वाल्मीकि जी ने अपनी वाल्मीकि रामायण में ही किया है।
ऊपर के वेद मंत्रों का सत्य श्रीराम के जीवन का एक अंग था जिसे वाल्मीकि जी ने यूं कहा है- ‘धर्मज्ञः सत्यसंधश्च’, अर्थात् श्रीराम धर्म के ज्ञाता एवं सत्य प्रतिज्ञा करने वाले थे। वाल्मीकि जी ने श्रीराम के अनेक गुण वाल्मीकि रामायण में वर्णन किए हैं। जैसे वह सदाचार से युक्त, सब प्राणियों का हित करने वाले, धर्मज्ञ, कृतज्ञ, सत्यवादी और दृढ़ प्रतिज्ञ थे। वह परोपकारी, ज्ञाननिष्ठ, वेद एवं वेदांगों के मर्मज्ञ, पवित्र, जितेंद्रिय एवं अष्टांग योग की साधना द्वारा समाधि लगाने वाले थे।
वह प्रतिभाग्यशाली सर्वप्रिय, कभी दीनता न दिखाने वाले तथा लौकिक एवं अलौकिक क्रियाओं में कुशल थे। क्षमा में पृथ्वी की भांति, अपराधी पर क्रोध करने में कालाग्नि के समान, दान देने में कुबेर एवं सत्य भाषण में मानों दूसरे धर्म थे। वह नित्य यज्ञ/अग्रिहोत्र करने वाले, माता-पिता एवं ऋषियों की सेवा करने वाले महापुरुष थे।
हम यहां विचार करें कि हम दशहरा दीवाली के अवसर पर श्रीराम के अधिक से अधिक गुणों को वाल्मीकि रामायण से सुनें, समझें और आचरण में लाए। दुर्भाग्य से आजकल दीपावली के इस पावन दिवस को कहीं नशा, जुआ खेलने जैसा निन्दित कर्म से जोड़ दिया गया है। आतिशबाजी ने कई जीवन निगलें हैं और वायु को दूषित करके प्राणियों को दुःख दिया है। यह सभी ईश्वर की सृष्टि में पापयुक्त कर्म है।
अतः हम दशहरा और दीपावली के पावन पर्व को भगवान श्रीराम की जीवन से जुड़ा देखकर उनके जीवन से कुछ गुण धारण करेंगे तो अवश्य ही भगवान् श्रीराम और राम भक्त हनुमान जैसी विभूतियां भारत वर्ष के परिवारों पर अपने आशीर्वाद से सुखों की वर्षा करने से नहीं चुकेंगी।
दीवाली जैसे पावन अवसरों पर नशा, जुआ आदि अनेक निन्दित कर्म करना तो हमें निश्चित ही अंधकार से ज्योति की तरफ नहीं अपितु ज्योति से अंधकार और सत्य को त्यागकर असत्य की ओर ले जाएगा जिसके दूषित परिणाम वर्तमान में हम और भविष्य में आने वाली पीढियां भुगतेंगी।
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