दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेन्द्र सचदेवा ने खोल डाली केजरीवाल सरकार की पोल, बताया नया अध्यादेश क्यों है जरूरी

नई दिल्ली, पुनर्वास न्यूज़ डेस्क। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेन्द्र सचदेवा ने केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था को सुधारने के लियें लाए अध्यादेश का स्वागत किया है। शनिवार 20 मई को एक संयुक्त प्रेसवार्ता के माध्यम से नेता दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेन्द्र सचदेवा, नेता प्रतिपक्ष रामवीर सिंह बिधूड़ी एवं सांसद मनोज तिवारी ने कहा है कि दिल्ली की गरीमा और जनता के हितों के लिए इस अध्यादेश का आना जरुरी था। इस अवसर पर प्रदेश प्रवक्ता हरीश खुराना और प्रवीण शंकर कपूर भी उपस्थित रहे।

वीरेन्द्र सचदेवा ने 11 मई से शुक्रवार 19 मई तक की रात तक के घटनाक्रम को मीडिया के सामने रखा। उन्होंने कहा कि 11 मई को सर्वोच्च न्यायालय की तरफ से निर्णय दिया गया जिसके बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दिल्ली के उपराज्यपाल ने आपसी बैठक की। लेकिन इस बैठक के बावजूद केजरीवाल की जल्दबाजी एवं अति महत्वकांक्षा का नतीजा है कि 12 मई को ही दिल्ली सरकार अधिकार ना मिलने की शिकायत लेकर सर्वोच्च न्यायालय चली गई। इसके साथ ही केजरीवाल सरकार ने सर्विसेज सचिव आशीष मोरे को हटाने की भी सिफारिश कर डाली।

दिल्ली भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि इसके बाद 13 मई को मंत्री सौरभ भारद्वाज ने सतर्कता सचिव राजशेखर को हटाने का आदेश जारी कर दिया। मतलब साफ था कि जो अधिकारी केजरीवाल की जांच करेगा उसे मानसिक रुप से प्रताड़ित करने का काम केजरीवाल सरकार के मंत्री और स्वयं केजरीवाल करेंगे।

वीरेन्द्र सचदेवा ने बताया कि इसके बाद मंत्री सौरभ भारद्वाज अधिकारियों के साथ हुए 15 मई की बैठक में सभी अधिकारियों से केजरीवाल सरकार के घोटालों चाहे वह फीडबैक यूनिट घोटाला हो, शीशमहल घोटाला हो, शराब घोटाला हो या फिर अन्य घोटाला हो सबकी फाइलें छीनना शुरु कर देते हैं। 16 मई की रात को अधिकारियों के कार्यालय के ताले तोड़कर कागजों की फोटो स्टेट की गई। अगले दिन यानि 17 मई को आशीष मोरे की जगह ए.के. सिंह को नियुक्त करने की फाइल उपराज्यपाल के पास आई और उसी दिन उपराज्यपाल ने उस फाइल को स्वीकृत करके भेज दिया।

वीरेन्द्र सचदेवा ने आगे बताया कि 18 मई को बिना उपराज्यपाल से बात किए अरविंद केजरीवाल ने ऐलान कर दिया है कि वह मुख्य सचिव को बदलेंगे, जो कि केजरीवाल के अधिकार क्षेत्र में ही नहीं है। फिर कल 19 मई को सौरभ भारद्वाज ने ऐलान किया कि सर्विसेज सचिव अभी तक नहीं बदले गए और फिर उसी दिन अपनी आदतों से लाचार आम आदमी पार्टी के पांच मंत्री धरने पर बैठे और अलग से अरविंद केजरीवाल सौदेबाजी करने उपराज्यपाल से मिलने चले गए।

दिल्ली भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि यह सब एक योजनाबद्ध साजिश के तहत अंजाम देने की कोशिश की गई। आज अरविंद केजरीवाल सरकार इस स्तर तक गिर चुकी है कि दिल्ली में बड़े मीडिया हाउसेज के खिलाफ नोटिस बनाने, उन्हें  तोड़ने और बिजली-पानी काटने की धमकी दे रही है। क्या यही सब करने केजरीवाल सत्ता में आए थे। अरविंद केजरीवाल ने साबित कर दिया कि वह सर्वोच्च न्यायालय की आड़ में मनमानी कर रहे हैं।

वीरेन्द्र सचेदवा ने आरोप लगाते हुए कहा कि आज केजरीवाल दिल्ली की भलाई के लिए नहीं बल्कि अपनी कमियों को छिपाने के लिए मनमानी कर रहे हैं। पिछले आठ सालों से उपराज्यपाल बदल गए, मुख्य सचिव बदले, हालात बदले नही बदला तो केजरीवाल का दोषारोपण करने का रवैया।

नेता प्रतिपक्ष रामवीर सिंह बिधूड़ी ने अपने राजनीतिक अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि 1993 में जब मदन लाल खुराना की सरकार बनी तो उस वक्त वह भी विधायक दल में थे और केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। उस वक्त मदन लाल खुराना ने रामवीर सिंह बिधूड़ी और कांग्रेस विधायक जगप्रवेश चंद्रा को भी अपने चेंबर में बुलाकर कहा कि उन्हें एक नए नगर निगम आयुक्त की जरुरत है, और उसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव से समय मांगा है, जिसमें रामवीर सिंह बिधूड़ी और जगप्रवेश चंद्रा दोनों को रहना है।

रामवीर सिंह बिधूड़ी ने बताया कि उस बैठक में उनके साथ तत्कालीन संसद में नेता प्रतिपक्ष अटल बिहारी वाजपेयी भी थे और उनके कहने के बाद प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने गृहमंत्री को फोन किया और उसी समय नए आयुक्त की नियुक्ति को सिद्धांतिक स्वीकृति दे दी गई।

नेता प्रतिपक्ष बिधूड़ी ने 1998 की एक और घटना का जिक्र करते हुए कहा कि “जब शीला दीक्षित की सरकार दिल्ली में थी और केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, उस दौरान उन्होंने मुझसे अनेको बार कहा कि जब तक श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार थी तब तक हमने सबसे ज्यादा राहत महसूस की और मुझे कभी भी मुश्किल नहीं आई जबकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया था कि पी. चिदंबरम के गृहमंत्री बनने पर थोड़ी मुश्किलें जरुर आई।”

रामवीर सिंह बिधूड़ी ने आगे कहा कि ये दोनों घटनाएं बताती है कि पहले केंद्र और दिल्ली सरकार के क्या रिश्ते होते थे, लेकिन अरविंद केजरीवाल ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्हे सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आते ही छटपटाहट शुरु हो गई। केजरीवाल सोशल मीडिया पर बेतुकी बयानबाजी करने लगे। विधानसभा के अंदर तो हमने देखा आम आदमी पार्टी के विधायक तो उपराज्यपाल को गाली तक देने से पीछे नहीं हटते। यदि केजरीवाल अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों की कार्य प्रणाली को समझते तो शायद उनका केन्द्र सरकार, उपराज्यपाल एवं विपक्ष से टकराव ना होता।

सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि आज अरविंद केजरीवाल का भ्रष्टाचारी चेहरा दिल्ली वालों के सामने पूरी तरह से उजागर हो चुका है। उनकी कलई खुल चुकी है। केजरीवाल को दिल्ली के घरों में साफ पानी, बुजुर्गों की पेंशन शुरु करने, आयुष्मान योजना लागू करने की चिंता नहीं है बल्कि उन्हें सिर्फ चिंता है कि उनके भ्रष्टाचार की जांच कर रहे अधिकारियों को कैसे परेशान किया जाए। उन्होंने कहा कि केजरीवाल एक संवैधानिक पद पर बैठे पदाधिकारी के साथ अपनी मनमानी कर रहे हैं, इसलिए इस अध्यादेश का आना बेहद जरुरी था।

सांसद तिवारी ने आगे कहा कि अध्यादेश का पैरा 95 बिल्कुल स्पष्ट कहता है कि जिस राज्य की सूची में किसी भी कानून का आभाव हो, उस कानून की स्पष्टता को बाधित करता हो ऐसे केस में केंद्र सरकार राज्य सरकार की सूची में जाकर कानून बना सकता है। उन्होंने अरविंद केजरीवाल को दिल्ली सरकार में एक विभाग संभालने की सलाह दी ताकि संविधान के आर्टिकल्स की जानकारी केजरीवाल को हो सके। तिवारी ने यह भी कहा कि केजरीवाल अभी उस रास्ते पर चल रहे हैं कि जहां वह पाप करें और उनके मंत्री जेल जाए।

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