एम.एस.स्वामीनाथन के शताब्दी वर्ष पर पीएम मोदी ने किया डाक टिकट जारी, मुख्य पोस्टमास्टर जनरल अखिलेश कुमार पांडे ने प्रधानमंत्री को भेंट की टिकट

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार 7 अगस्त को नई दिल्ली स्थित सी. सुब्रमण्यम सभागार, पूसा में भारत रत्न डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन शताब्दी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने समारोह की अध्यक्षता की। इस अवसर पर पीएम मोदी ने डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन पर एक स्मारक डाक टिकट जारी किया। डाक टिकट का पहला एल्बम दिल्ली परिमंडल के मुख्य पोस्टमास्टर जनरल कर्नल अखिलेश कुमार पांडे ने प्रधानमंत्री को विमोचन हेतु भेंट किया। विमोचन के दौरान नीति आयोग के सदस्य डॉ. रमेश चंद और एमएसएसआरएफ (MSSRF) की अध्यक्ष डॉ. सौम्या स्वामीनाथन भी उपस्थित थीं।

डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन पर जारी यह डाक टिकट, भारतीय कृषि में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाले वैज्ञानिक नवाचारों में उनके दूरदर्शी योगदान और भारत को एक खाद्य-सुरक्षित राष्ट्र बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।

डॉ. एमएस स्वामीनाथन के साथ अपने कई वर्षों के जुड़ाव को साझा करते हुए पीएम मोदी ने गुजरात की शुरुआती परिस्थितियों का स्‍मरण किया, जहां सूखे और चक्रवातों के कारण कृषि को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता था। इस चुनौती से निपटने के लिए नरेन्द्र मोदी ने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान, मृदा स्वास्थ्य कार्ड पहल पर कार्य शुरू किया था। उन्होंने याद किया कि प्रोफेसर स्वामीनाथन ने इस पहल में गहरी रुचि दिखाते हुए खुले दिल से सुझाव दिए, जिसने इसकी सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

पीएम मोदी ने लगभग बीस वर्ष पहले तमिलनाडु में प्रोफेसर स्वामीनाथन के रिसर्च फाउंडेशन सेंटर के दौरे का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि 2017 में, उन्हें प्रोफेसर स्वामीनाथन की पुस्तक, ‘द क्वेस्ट फॉर ए वर्ल्ड विदाउट हंगर’ का विमोचन करने का अवसर मिला। उन्होंने कहा कि 2018 में, वाराणसी में अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के क्षेत्रीय केंद्र के उद्घाटन के दौरान, प्रोफेसर स्वामीनाथन का मार्गदर्शन अमूल्य था।

प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन के साथ हुआ प्रत्‍येक वार्तालाप सीखने का एक अनुभव रहा। उन्होंने प्रोफेसर स्वामीनाथन के विचार “विज्ञान केवल खोज के बारे में नहीं है, बल्कि वितरण के बारे में है,” का स्‍मरण करते हुए यह पुष्टि की कि उन्होंने अपने कार्य के माध्यम से इसे सिद्ध किया।

पीएम मोदी ने कहा कि प्रोफ़ेसर स्वामीनाथन ने न केवल शोध किया, बल्कि किसानों को कृषि पद्धतियों में बदलाव लाने के लिए प्रेरित भी किया। उन्होंने कहा कि आज भी, प्रोफ़ेसर स्वामीनाथन का दृष्टिकोण और विचार भारत के कृषि क्षेत्र में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उन्हें भारत माता का सच्चा रत्न बताते हुए, पीएम मोदी ने इस बात पर गर्व व्यक्त किया कि उनकी सरकार के कार्यकाल में प्रोफ़ेसर स्वामीनाथन को भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन ने भारत को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के अभियान का नेतृत्व किया। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन की पहचान हरित क्रांति से भी कहीं अधिक है। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन ने रसायनों के बढ़ते उपयोग और एकल-फसल खेती के खतरों के बारे में किसानों में निरंतर जागरूकता फैलाई।

पीएम मोदी ने कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन ने अन्‍न की पैदावार को बढ़ावा देने के लिए काम किया, लेकिन वे पर्यावरण और धरती माता के प्रति भी उतने ही चिंतित थे। प्रधानमंत्री ने कहा कि दोनों उद्देश्यों में संतुलन बनाने और उभरती चुनौतियों का समाधान करने के लिए प्रोफेसर स्वामीनाथन ने सदाबहार क्रांति की अवधारणा प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन ने ग्रामीण समुदायों और किसानों को सशक्त बनाने के लिए जैव-ग्रामों का विचार प्रस्तावित किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रोफेसर स्वामीनाथन ने सामुदायिक बीज बैंकों और अवसरों का सृजन करने वाली फसलों जैसे नवीन विचारों को बढ़ावा दिया।

इस अवसर पर शिवराज सिंह ने जीवन की सार्थकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि दूसरों के लिए जीना ही असली जीवन हैं, जो देश के लिए जीता है, समाज के लिए जीता है, औरों के लिए जीता है, दुनिया के लिए जीता है, वही सही अर्थों में जीवन का अर्थ सिद्ध कर पाता है। डॉ. स्वामीनाथन जी ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी थे, जिन्होंने अपना जीवन दूसरों के लिए समर्पित कर दिया। स्वामीनाथन जी के बताए रास्ते पर चलते हुए हम देश व दुनिया में भुखमरी और अभाव नहीं होने देंगे।

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्वामीनाथन जी के योगदान का स्मरण करते हुए कहा कि 1942-43 में बंगाल के अकाल के कारण जब लाखों लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच गए थे, तब स्वामीनाथन जी का हृदय व्यथित हो गया। उन्होंने अपने आप को खेती, किसान और भुखमरी मिटाने के लिए समर्पित कर दिया।

कृषि मंत्री ने कहा कि केवल इतना स्मरण दिलाना चाहता हूं कि 1966 में मैक्सिको से अठारह हजार टन मैक्सिकन गेहूं आया था, जिसे मिश्रित करके पंजाब की किस्मों के साथ एक नई संकर किस्म गेहूं की विकसित की थी और उसी किस्म के कारण एक साल में गेहूं का उत्पादन पांच मिलियन टन से बढ़कर सत्रह बिलियन टन हो गया था। स्वामीनाथन जी हरित क्रांति के जनक थे और उसके बाद उन्होंने जो कृषि विज्ञान के लिए व्यवस्था बनाई वह आज सुदृढ़ता से सही दिशा में काम कर रही है।

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