पंडित अनिल चौधरी के पखावज वादन के 50 बरस, विश्व भर में कर रहे हैं देश का नाम रोशन

  • प्रदीप सरदाना 

वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक 

पखावज अर्थात मृदंग एक ऐसा प्राचीन वाद्य यंत्र है जिसका उल्लेख हमारे पवित्र शास्त्रों में भी मिलता है। पिछले कुछ बरसों में कितने ही नए वाद्य यंत्र प्रचलन मेँ आ गए हैं लेकिन पखावज आज भी अपना महत्व बनाए हुए है। यहाँ तक फिल्म संगीत में भी पखावज बरसों से अपनी शानदार उपस्थिती दर्ज कराता रहा है। ‘मधुबन में राधिका नाची रे’ जैसे गीत इसकी बड़ी मिसाल हैं।

पिछले 50 बरसों से देश का नाम रोशन कर रहे हैं

इधर देखा गया है कुछ कलाकार तो बरसों से पखावज (Pakhavaj) के लिए पूरी तरह समर्पित रहे हैं। ऐसे ही एक कलाकार हैं-पंडित अनिल चौधरी (Pandit Anil Chaudhary)। दरभंगा घराने के अनिल चौधरी (Anil Chaudhary) पिछले 50 बरसों से पखावज को खूबसूरती से बजा कर पखावज की खूबसूरत गूंज विश्वभर में पहुंचा रहे हैं। साथ ही अपना, अपने घराने और देश का नाम भी सभी जगह रोशन कर रहे हैं।

पेशे से आँखों के चिकित्सक भी

यूं अनिल चौधरी (Anil Chaudhary) पेशे से आँखों के चिकित्सक भी रहे हैं। इसलिए उनकी एक पहचान जाने माने नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ अनिल चौधरी (Dr. Anil Chaudhary) के रूप में भी होती रही है। लेकिन पखावज वादक के रूप में  अनिल चौधरी (Anil Chaudhary) को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी पहचान मिली है।

मुलाक़ात पर बरसों का अनुभव भी स्पष्ट झलक रहा था

हाल ही में अनिल चौधरी (Anil Chaudhary) से मुलाक़ात हुई तो उनके चेहरे पर उनकी इस कला की आत्म संतुष्टि के साथ बरसों का अनुभव भी स्पष्ट झलक रहा था। पंडित चौधरी (Pandit Anil Chaudhary) से भेंट हुई तो पखावज (Pakhavaj) और उनकी अबतक की कला यात्रा की बहुत सी बातों का सिलसिला चल निकला।

आकाशवाणी के युववाणी कार्यक्रम से कला यात्रा शुरु की

पंडित चौधरी (Pandit Anil Chaudhary) बताते हैं-‘’सन 1975 में आकाशवाणी पटना के युववाणी कार्यक्रम से अपनी कला यात्रा शुरु की थी। इतने बरसों में देश भर के साथ कितने ही देशों में मैंने अपनी एकल प्रस्तुति दी हैं, तो कुछ अन्य कलाकारों के साथ संगत भी की है। पखावज का संस्कृत नाम मृदंग भी है। इसलिए कुछ लोग इसे पखावज कहते हैं तो कुछ मृदंग।

नाना पंडित यमुना प्रसाद चौधरी रहे पहले गुरु

बचपन में अपने नाना पंडित यमुना प्रसाद चौधरी को मृदंग बजाता देख मेरी भी दिलचस्पी इस वाद्य यंत्र में जागी। मेरे पहले गुरु मेरे नाना जी रहे। हालांकि बाद में मैंने देश में पखावज के बड़े विद्वान रहे पंडित राम आशीष पाठक से भी पखावज सीखा। यूं हमारा दरभंगा घराना 350 साल पुराना है। ये ध्रुपद, पखावज और वीणा का घराना है। अपने इस घराने में उम्र के हिसाब से मैं सबसे बड़ा हूँ। लेकिन मुझे खुशी है कि आगे और भी बच्चे मृदंग वादन सीख रहे हैं और बहुत अच्छा बजा भी रहे हैं। जो यह बताता है कि पखावज का भविष्य उज्ज्वल है।‘’

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