100 Years of Guru Dutt: सिर्फ 8 फिल्मों के निर्माण, निर्देशन और 13 फिल्मों में अभिनय करके 60 बरसों से बने हैं फिल्म गुरु

  • प्रदीप सरदाना 

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक 

पिछले कुछ समय से फिल्म संसार कई महान फ़िल्मकारों की जन्म शताब्दी के  उत्सव मना रहा है। इधर अब एक ऐसे फ़िल्मकार गुरुदत्त (Guru Dutt) की जन्म शताब्दी है, जिनकी अद्धभुत प्रतिभा को उनके जीते जी वह सम्मान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे। तब किसी ने उन्हें महान फ़िल्मकार के रूप में नहीं स्वीकारा। लेकिन मरणोपरांत वह देश के ही नहीं विश्व भर के फ़िल्मकारों की नज़र में महान फ़िल्मकार बन गए। उन्हीं गुरुदत्त (Guru Dutt) का गत 9 जुलाई को 100 वां जन्म दिन था।

गुरुदत (Guru Dutt) की फिल्म ‘कागज के फूल’ में कैफी आज़मी (Kaifi Azmi) का लिखा एक बेहद खूबसूरत गीत था- ‘वक्त ने किया क्या हसीं सितम’। लेकिन इसे संयोग कहें या कुछ और कि यह गीत गुरुदत्त (Guru Dutt) की निजी ज़िंदगी से भी पूरी तरह जुड़ गया है।

दो साल की उम्र में वसंत से गुरुदत्त बन गए

सन 1925 के मैसूर साम्राज्य के बैंगलोर में 9 जुलाई को जन्मे गुरुदत्त का नाम जन्म के समय7 वसंत कुमार पादुकोण था। लेकिन करीब दो साल बाद ही उनके माता पता ने  उनका नाम गुरुदत्त  (Guru Dutt) रख दिया।

फिल्मों में दिलचस्पी और देव आनंद से दोस्ती 

लेकिन कला-संगीत और फिल्म की दुनिया उन्हें पुकार रही थी। वह कुछ दिन मुंबई में रहने के बाद पुणे चले गए। जहां पहले प्रभात स्टुडियो में उन्होंने नौकरी की। बाद में फ़िल्मकर वी शांताराम (V Shantaram) ने प्रभात से अलग होकर अपना राजकमल स्टुडियो बनाया तो गुरुदत्त (Guru Dutt) उनके साथ हो लिए। जहां गुरुदत्त (Guru Dutt) ने नृत्य कोरियोग्राफी के साथ निर्देशन और अभिनय की बारीकियों को तो सीखा ही।

साथ ही देव आनंद (Dev Anand) और रहमान (Rehman) जैसे अभिनेता से भी गुरुदत्त (Guru Dutt) की दोस्ती भी यहीं हुई। देव आनंद (Dev Anand) की पहली फिल्म ‘हम एक हैं’ में गुरुदत्त (Guru Dutt) नृत्य निर्देशक के रूप में जुड़े थे। दोनों दोस्तों ने यह कसम ली कि आगे चलकर जो भी आगे बढ़ेगा वह एक दूसरे का साथ देगा।

सन 1949 में नयी जिंदगी शुरू हुई

इसके बाद 1949 में गुरुदत्त मुंबई आ गए। यहीं से गुरुदत्त की एक नयी कहानी, नयी जिंदगी शुरू हुई। देव आनंद (Dev Anand) ने अपनी फिल्म निर्माण कंपनी नवकेतन बनाई तो 1951 में अपनी पहली निर्मित फिल्म ‘बाज़ी’ में देव (Dev Anand) ने गुरु (Guru Dutt) को निर्देशन का जिम्मा सौंप दिया। यह फिल्म सफल हुई तो देव आनंद (Dev Anand) के साथ गुरुदत्त (Guru Dutt) की राह भी आसान हो गयी। इसके बाद गुरुदत्त (Guru Dutt) ने ‘जाल’ और ‘बाज़’ का निर्देशन भी दिया।

फिल्म ‘बाज’ से निर्देशक के साथ अभिनेता भी बन गए

सन 1953 में प्रदर्शित ‘बाज’ में गुरुदत्त (Guru Dutt) निर्देशक के साथ अभिनेता भी बन गए। इससे गुरुदत्त (Guru Dutt) में नया उत्साह भर आया। इसके बाद उन्होंने स्वयं अपने बैनर ‘गुरुदत्त फिल्म्स’ (Guru Dutt Films) की स्थापना की। सन 1954 में गुरुदत्त (Guru Dutt) ने स्वयं नायक बन शकीला और श्यामा को नायिका लेकर अपने निर्माण निर्देशन में ‘आरपार’ बनाई तो यह फिल्म भी हिट हो गयी। फिर 1955 में आई उनकी ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’ ने भी सफलता के नए आयाम बना दिये।

सिर्फ 13 फिल्मों में ही अभिनय किया

गुरुदत्त (Guru Dutt) ने अपने बैनर से कुल 8 फिल्मों आरपार, मिस्टर एंड मिसेज 55, सीआईडी, प्यासा, कागज के फूल, चौदहवीं का चाँद और साहिब बीवी और गुलाम का निर्माण किया। जबकि उनके बैनर की एक फिल्म ‘बहारें फिर भी आएंगी’ उनके मरणोपरांत प्रदर्शित हुई। इनमें से 4 फिल्मों का निर्देशन ही खुद गुरुदत्त (Guru Dutt) ने किया। जिनमें ‘आर पार’ और ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’ के अतिरिक्त ‘प्यासा’ और ‘कागज के फूल’ शामिल हैं। अपने बैनर से अलग उन्होंने 4 और फिल्में बाज़ी, जाल, बाज़ और सैलाब का निर्देशन भी किया। जबकि उन्होंने कुल 13 फिल्मों में ही अभिनय किया। लेकिन अपनी इस छोटी सी फिल्म यात्रा से ही गुरुदत (Guru Dutt) सिनेमा के उस क्षितिज पर पहुँच गए जहां से उन्हें कोई लाख चाहकर भी नहीं हिला सकता।

निराशा, शराब और आत्महत्या  के प्रयास

निराशा में गुरुदत्त (Guru Dutt) बुरी तरह शराब की गिरफ्त में आ गए। दो बार उन्होंने आत्महत्या का असफल प्रयास किया। लेकिन 10 अक्तूबर 1964 को वह सिर्फ 39 बरस की आयु में इस दुनिया से कूच कर गए। वह आत्महत्या थी या नशे की हालत में कुछ और कारणों से मौत इस पर अलग अलग मत हैं। लेकिन वक्त ने उनके साथ हसीं सितम किया और वह एक महान अभिनेता और महान निर्देशक थे, इस बात पर आज सभी एक मत हैं।

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