राज बब्बर की ज़िंदगी के कई राज बताती है पुस्तक – दिल में उतरता फसाना

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक

दिलकश अभिनेता और चर्चित राजनेता राज बब्बर को लेकर हाल ही में एक पुस्तक आई है, राज बब्बर-दिल में उतरता फसाना। प्रलेक प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक को वरिष्ठ पत्रकार और कथाकार हरीश पाठक ने संपादित किया है। पिछले दिनों नयी दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में पहली बार इस पुस्तक को प्रस्तुत किया गया। तभी से यह पुस्तक लगातार सुर्खियों में है।

इस पुस्तक की खास बात यह है कि इसमें राज बब्बर को लेकर 35 विभिन्न लेख हैं। इन लेखों को उन्होंने ही लिखा है जो राज बब्बर को बरसों से जानते हैं। जिनमें उनके बचपन के साथी से लेकर उनके साथी अभिनेता, लेखक, पत्रकार, फिल्म समीक्षक और उनके व्यक्तिगत मित्र भी शामिल हैं। इससे यह पुस्तक ऐसी बन गयी है जो राज बब्बर को करीब से जानने–पहचानने का मौका देने के साथ उनकी ज़िंदगी के कई राज भी खोलती है।

पुस्तक में एक लेख मेरा यानि प्रदीप सरदाना का भी है। ‘टूंडला की वह यादगार शाम’ शीर्षक के अपने इस लेख में यूं तो मैंने राज बब्बर के साथ अपनी कई नयी पुरानी यादों का उल्लेख किया है। लेकिन मेरा यह लेख मूलतः 31 जनवरी 1990 की दिल्ली-आगरा-टूंडला की उस यात्रा पर केन्द्रित है। जब राज बब्बर के पिता कौशल बब्बर जी अपनी रेलवे की नौकरी से टूंडला में रिटायर हो रहे थे। राज बब्बर की तब तक प्रेमगीत, आप तो ऐसे ना थे, इंसाफ का तराजू, निकाह, अगर तुम ना होते, आज की आवाज़, अंधा युद्द और ज़ख़्मी औरत जैसी कई फिल्में रिलीज होकर हिट-सुपर हिट हो चुकी थीं।

यहाँ यह सब बताने का तात्पर्य यह है कि तब राज बब्बर हिन्दी सिनेमा के एक चमकते सितारे बन चुके थे। अपने पिता के टूंडला में आयोजित  रिटायरमेंट समारोह के लिए दिल्ली-मुंबई से सिर्फ 7 या 8 पत्रकारों को आमंत्रित किया था। जब हम उस दिन आगरा होते हुए देर शाम टूंडला पहुंचे तो वहाँ के नज़ारे हैरान कर देने वाले थे। पता लगा यह फिल्म स्टार कुछ बरस पहले तक जहां रहता था वह एक बहुत छोटा सा सरकारी क्वाटर था। लेकिन राज बब्बर ने कोई संकोच ना करते हुए हमको दिखाया कि यह स्टार एक बेहद साधारण परिवार से आया है। जिसकी जड़ें आज भी ज़मीन से जुड़ी हैं।

मैंने अपने इस लेख में उस शाम की पूरी कहाने तो लिखी ही है। साथ ही जब मैंने दिल्ली आकर उस लेख को ‘नवभारत टाइम्स’ में लिखा तो उसके प्रकाशन के बाद राज बब्बर की क्या प्रतिक्रिया रही वह सब भी लिखा है। और उसके बाद की राज बब्बर के संग की उन मुलाकातों के बारे में भी, जब वह राजिनीति में जा रहे थे। या जब वह सांसद बन गए। उन सब दिलचस्प बातों के साथ राज बब्बर के बारे में आप यदि और भी बहुत कुछ दिलचस्प और अलग जानना चाहते हैं तो आपको इस किताब को पढ़ना चाहिए।

पिछले दिनों अपने दिल्ली प्रवास के दौरान अपनी यह पुस्तक मुझे प्रेस क्लब में भेंट की तो मुझे पुस्तक देखकर प्रसन्नता हुई। यह प्रसन्नता तब और भी बढ़ गयी जब इस दौरान पुराने मित्र त्रिलोक दीप, डॉ हरीश भल्ला और विवेक शुक्ला से भी मुलाक़ात हुई। साथ ही पुस्तक को लेकर कुछ चर्चा भी।

   पुस्तक पढ़कर जब राज बब्बर ने किया फोन

हाँ मैं एक बात और बताना चाहूँगा। वह यह कि जब भाई राज बब्बर ने इस पुस्तक में मेरे इस लेख को पढ़ा, तो पिछले हफ्ते उनका रात करीब साढ़े 10 बजे फोन आया। वह बोले –सो तो नहीं गए । मैंने कहा अभी कहाँ, अभी तो हमारी शाम हुयी है। वह हँसे और बोले- ‘’असल में आज ही मुझे पुस्तक मिली। मैंने आपका लेख पढ़ा तो मैं पढ़ता ही गया। आपने बरसों पुराने उस घटना क्रम  को शब्दों में ऐसे उतारा है कि पूरा खाका ही खींच दिया है। लेख पढ़ते हुए सब कुछ आँखों के सामने घूमने लगा। बहुत ही अच्छा और ईमानदारी से लिखा है आपने। सच कहूँ तो आपका लेख पढ़ते हुए मेरी आँखों में आँसू आ गए।‘’

मुझे राज भाई की यह बात सुन अच्छा लगना ही था। मैंने उन्हें धन्यवाद किया। अपने दिल की बात उन्होंने मुझसे आज भी उसी साफगोई से साझा की, जैसे वह बरसों पहले करते थे।

यह तो रही मेरे लेख की बात। पर आपको बता दें कि इस पुस्तक में अन्य  लेख भी दिलचस्प और अहम हैं। जिन्हें उद्यन शर्मा, संतोष भारतीय, अरविंद कुमार, त्रिलोक दीप, चित्रा मुद्गल, प्रहलाद अग्रवाल, सुमंत मिश्र, चंचल, शरद राय, हेमंत पाल, इंद्रमोहन पन्नू और विवेक शुक्ला जैसे व्यक्तियों ने लिखा है। तो साथ ही उनके बचपन, रंगमंच और सिनेमा की दुनिया के साथियों के भी बेहद खास लेख इसमें हैं। जिनमें प्रदीप तनेजा, प्रोफेसर हामिद अली, अनिल सहगल, अभय बेडेकर, समीर चतुर्वेदी, हसन कमाल, ओम कटारे, चित्रार्थ, सुरेन्द्र पाल, राजा बुंदेला, राजेन्द्र गुप्ता और अतुल तिवारी जैसे और भी कुछ खास नाम हैं। हाँ एक लेख शाहरुख खान का भी है।

एक बात और अब इस पुस्तक को लेकर दो विशेष कार्यक्रम भी होने जा रहे हैं। एक 24 मार्च शाम 4 बजे, आगरा के होटल क्लार्क शिराज में। जहां हिंदुस्तान दैनिक के प्रधान संपादक शशि शेखर इस पुस्तक का विमोचन करेंगे।

दूसरा 25 मार्च को दोपहर 2 बजे ग्वालियर के तानसेन रेजीडेंसी में। इस लोकार्पण और विमर्श समारोह में स्वयं राज बब्बर मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहेंगे। जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता सांसद विवेक शेजवलकर करेंगे। देव श्रीमाली, राकेश त्यागी, सुरेश तोमर और राकेश पाठक समारोह के विशिष्ट अतिथियों में से हैं। कार्यक्रम का संचालन जाने माने शायर अतुल अजनबी करेंगे। हरीश पाठक तो आगरा और ग्वालियर के दोनों समारोह में रहेंगे ही। कुल मिलाकर यह कि इस पुस्तक को लेकर चर्चा के कई दौर अभी चलते रहेंगे।

Related Articles

Back to top button