Sunil Dutt Death Anniversary: एक शानदार अभिनेता और दिलकश इंसान थे सुनील दत्त
सुनील दत्त की पुण्य तिथि पर विशेष

- प्रदीप सरदाना
वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक
सुनील दत्त (Sunil Dutt) भारतीय सिनेमा के ऐसे सितारे थे जो अपने लगभग सभी क्षेत्रों में सफल रहे. जहाँ एक अभिनेता और निर्माता निर्देशक के रूप में उन्होंने कई सफल फिल्में दीं, वहां समाज सेवा और राजनीति में भी वह काफी सफल रहे। वह मुंबई के शेरिफ बने, फिर मुंबई के उत्तर पश्चिम संसदीय क्षेत्र से पांच बार लोकसभा सदस्य रहे और केंद्र सरकार में खेल और युवा मंत्री पद तक पहुंचे।
सुनील दत्त (Sunil Dutt) ने जब 1958 में उस दौर की सुपर हिट हीरोइन नर्गिस से शादी की तो बहुत से लोगों का मानना था कि यह शादी ज्यादा नहीं चलेगी। लेकिन सुनील दत्त-नर्गिस का वैवाहिक जीवन इतना सफल रहा कि बहुतों के लिए प्रेरणा बन गया।
सुनील दत्त का जन्म 6 जून 1929 को झेलम के उस खुर्द गाँव में हुआ जो अब पाकिस्तान में है। देश विभाजन के बाद इनका परिवार हरियाणा के यमुना नगर के मंडोली गाँव में आकर बस गया। तब सुनील दत्त का नाम बलराज दत्त था और देश विभाजन के समय उनकी उम्र 18 बरस की थी। लेकिन जब वह फिल्मों में अपना करियर बनाने मुंबई पहुंचे तो वह बलराज से सुनील बन गए। क्योंकि उस समय फिल्मों में पहले ही बलराज साहनी जैसे शानदार अभिनेता मौजूद थे।
हालांकि शुरू में सुनील दत्त को जब फिल्मों में काम नहीं मिला। तब उन्होंने फिल्मों में काम पाने के संघर्ष के साथ अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई भी की और मुंबई की बस सेवा में 120 रुपए महीने पर टिकट चेकिंग स्टाफ की नौकरी भी। इसी दौरान सुनील दत्त को रेडियो सिलोन पर फिल्म कलाकारों के इंटरव्यू करने का एक कार्यक्रम भी मिल गया।
इस कार्यक्रम में सुनील को इंटरव्यू करने पर 25 रुपए मिलते थे। इसी कार्यक्रम के चलते दत्त की मुलाकात फिल्मकार रमेश सैगल से हुई तो सैगल ने सुनील दत्त को अपनी फिल्म ‘प्लेट फॉर्म’ का हीरो बना दिया। सुनील दत्त की यह पहली फिल्म 1955 में प्रदर्शित हुई थी। लेकिन जिस फिल्म ने सुनील दत्त की जिंदगी बदल दी वह थी-‘मदर इंडिया’ (Mother India)।
सुनील दत्त ने कुल लगभग 100 फिल्मों में अभिनय किया और 8 फिल्मों का निर्माण तथा 6 फिल्मों का निर्देशन। उनकी बनायीं फिल्मों में ‘मुझे जीने दो’, ‘यादें’, ‘रेशमा और शेरा’ और ‘दर्द का रिश्ता’ को तो काफी ख्याति के साथ पुरस्कार भी मिले।
सन 1964 में प्रदर्शित फिल्म ‘यादें’ तो देश की एक ऐसी अनुपम फिल्म थी जिसमें सुनील दत्त अकेले कलाकार थे। पूरी फिल्म में सिर्फ सुनील दत्त ही पर्दे पर रहकर, अपनी यादों को के सहारे फिल्म को आगे बढ़ते हैं। बस एक दृश्य में उनकी पत्नी नर्गिस आती हैं। इस नए प्रयोग की फिल्म को टिकट खिड़की पर चाहे सफलता नहीं मिली। लेकिन फिल्म को जहां राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (National Film Award) और फिल्म फेयर मिले, वहाँ गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी फिल्म का नाम दर्ज हुआ।
सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में भी सुनील दत्त को ’मुझे जीने दो’ और ‘खानदान’ के लिए फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला। यूँ उनके खाते में बतौर अभिनेता हम हिन्दुतानी, पड़ोसन, मिलन, गुमराह, वक्त, हमराज, मेरासाया,हीरा,प्राण जाए पर वचन न जाए ,नागिन ,जानी दुश्मन, गीता मेरा नाम, 36 घंटे, जख्मी, क्षत्रिय और मुन्नाभाई एमबीबीएस जैसी कई खूबसूरत फिल्में शामिल हैं।
मुन्नाभाई एमबीबीएस (Munnabhai MBBS) में तो सुनील दत्त ने अपने बेटे संजय दत्त (Sanjay Dutt) के साथ पिता-पुत्र की ऐसी यादगार भूमिका की जो सुनील दत्त के भी दिल के बेहद करीब थी।
सुनील दत्त फिल्म इंडस्ट्री के एक ऐसे अभिनेता भी रहे जिन्होंने फिल्म इंडस्ट्री और फिल्म कलाकारों आदि के कल्याण के लिए भी बहुत से अच्छे काम किए। इसलिए उनके सिनेमा में दोस्त भी बहुत थे। जिनमें दिलीप कुमार (Dilip Kumar) और राजेन्द्र कुमार (Rajendra Kumar) के साथ तो उनकी गहरी दोस्ती रही।
दिलीप कुमार और उनका घर मुंबई में बिलकुल साथ साथ है। फिर राजेन्द्र कुमार तो तब उनके समधी भी बन गए। जब दत्त की बेटी नम्रता और राजेन्द्र कुमार के पुत्र कुमार गौरव की शादी हो गयी। इसके बाद तो सुनील दत्त और राजेन्द्र कुमार कई समारोह में साथ-साथ ही जाते थे। जिन दिनों संजय दत्त की गैर कानूनी गतिविधियों के कारण सुनील दत्त भी दुख और मुसीबत में फंस गए थे तब राजेन्द्र कुमार तो कई रात उनके घर में ही रहे।
शानदार अभिनेता और खूबसूरत इंसान सुनील दत्त का 25 मई 2005 को मुंबई में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। तब उनका पुराना बंगला टूटकर नया रूप ले रहा था। सुनील दत्त रात को सोने गए लेकिन सुबह उठे नहीं।
सुनील दत्त ने अपने जीवन में जहां अनेक सुख, सफलताएँ और सम्मान पाये वहाँ दुखों से भी उनका सामना होता रहा। जब सुनील दत्त ने संजय को को लॉंच करने के लिए ‘रॉकी’ फिल्म बनाई तो इस फिल्म की रिलीज से पहले नर्गिस (Nargis) चल बसीं। इससे सुनील दत्त और संजय दोनों बिखर से गए। लेकिन जिस दिन ‘रॉकी’ का प्रीमियर हुआ उस दिन थिएटर में सुनील दत्त ने अपने साथ की एक सीट को खाली छोड़कर यह महसूस किया कि नर्गिस भी उनके साथ बैठकर ‘रॉकी’ (Rocky) देख रही हैं।