Saroja Vaidyanathan: भरनाट्यम गुरु सरोजा वैद्यनाथन का जाना

  • प्रदीप सरदाना 

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक 

भरतनाट्यम गुरु के रूप में विख्यात सरोजा वैद्यनाथन (Saroja Vaidyanathan) ने पिछले दिनों बेहद खामोशी से इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

मैं पिछले काफी दिनों से उनसे मिलने का सोच रहा था। लेकिन मिलना हो नहीं सका। सरोजा जी (Saroja Vaidyanathan) एक बेहद खूबसूरत नृत्यांगना थीं। मैं उन्हें 1980 के दशक से जानता था। उस दौर में जब पहली बार उनका नृत्य देखा तो मैं अवाक रह गया। उनकी यह प्रतिभा देख हमने उन्हें 1987 में अपनी पत्रकारों, लेखकों और कलाकारों की संस्था के ‘आधारशिला’ पुरस्कार (Aadharshila Award) से सम्मानित किया तो वह बहुत प्रसन्न हुईं।

इसके बाद उनसे मेरा आत्मीय रिश्ता बन गया था। यह उनके जीवन का पहला प्रमुख पुरस्कार था। जो उन्हें तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा (Vice President Shankar Dayal Sharma) ने प्रदान किया था। हमारे उस कार्यक्रम में सरोजा (Saroja Vaidyanathan) की नृत्य प्रस्तुति देख शंकर दयाल जी (Shankar Dayal Sharma) भी काफी प्रभावित हुए थे।

कुछ समय बाद सरोजा वैद्यनाथन (Saroja Vaidyanathan) ने नयी दिल्ली में अपने डांस स्कूल ‘गणेश नाट्यालाय’ की स्थापना की तो उसका उदघाटन भी शंकर दयाल जी ने किया।

सरोजा वैद्यनाथन (Saroja Vaidyanathan) को भारत सरकार ने 2002 में पदमश्री और 2013 में पदमभूषण से सम्मानित किया। जबकि संगीत नाटक अकादमी फ़ेलोशिप और पुरस्कार तो उन्हें इसी वर्ष  ही फरवरी में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने प्रदान किया था।

यह एक संयोग ही था कि गत 19 सितंबर को सरोजा वैद्यनाथन का 86 वां जन्म दिन था। संगीत नाट्क अकादमी ने उन्हें उस दिन जन्म दिन की बधाई भी दी। लेकिन इसके ठीक दो दिन बाद 21 सितंबर को तड़के 4 बजे उन्होंने अपनी अंतिम सांस लेकर इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

कर्नाटक के बेल्लारी में 19 सितंबर 1937 में जन्मी सरोजा (Saroja Vaidyanathan) ने 7 साल की उम्र से ही नृत्य सीखना शुरू कर दिया था। जब वह 16 की हुईं तो उनके नृत्य की पहली प्रस्तुति हुई। उसके कुछ समय बाद उनका भारतीय प्रशासनिक अधिकारी वैद्यनाथन से विवाह हो गया। इस दौरान उनका नृत्य कुछ रुका भी।

लेकिन सन 1972 में दिल्ली आने पर वह नृत्य के लिए पूरी तरह समर्पित होती चली गईं। उन्होंने जहां हजारों को नृत्य की शिक्षा देकर उन्हें अच्छी नृयांगना बनाया। वहाँ नृत्य पर कुछ पुस्तकें भी लिखीं। उनकी पुत्रवधू रमा वैद्यनाथन (Rama Vaidyanathan) भी एक कुशल नृत्यांगना हैं। उनके पुत्र कामेश बताते हैं- ‘’हमको जून में पता लगा उन्हें कैंसर है और करीब तीन महीने के भीतर ही उनका निधन हो गया। लेकिन हमारा पूरा प्रयास है कि उनके कार्यों को हम आगे बढ़ाते रहेंगे।‘’

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