अमिताभ श्रीवास्तव की पुस्तक ‘आधी सदी’ का विमोचन,राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के 50 बरसों की अनुपम गाथा

  • प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (National School of Drama) देश की एक ऐसी संस्था है जिसके प्रांगण में नाट्य जगत का ऐसा इतिहास समाया है, जिसे जितना जानते जाओ उतना और जानने की उत्सुकता होती है। इस विद्यालय ने रंग मंच को तो कई दिग्गज दिये ही हैं। साथ ही फिल्म संसार भी यहाँ के पूर्व छात्रों की बदौलत गर्व कर सकता है। एनएसडी (NSD) के गर्भ से एक से एक शानदार फिल्म अभिनेता-अभिनेत्री की उत्पत्ति भी हुई है।

एनएसडी को लेकर यूं समय समय पर बहुत कुछ लिखा जाता रहा है। मैं स्वयं भी पिछले 40 बरसों से एनएसडी और यहाँ के लोगों को लेकर कुछ न कुछ लिखता ही रहा हूँ। यहाँ के विभिन रंग उत्सव और अन्य गतिविधियां से भी हम एनएसडी को कुछ और जानने, कुछ और समझने का प्रयास करते हैं। लेकिन इतने बड़े नाट्य संस्थान की ऐसी ऐसी गाथाएँ हैं, जिनको विस्तृत रूप में एक साथ सामने आने की जरूरत, लंबे अरसे से महसूस की जा रही थी।

अच्छी बात यह है कि अब एक ऐसी पुस्तक आ गयी है जिसके माध्यम से एनएसडी के इतिहास को अच्छे से जाना जा सकेगा। इस पुस्तक का नाम है- ‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय-आधी सदी’। जिसे लिखा है एनएसडी के एक प्रतिभाशाली पूर्व छात्र अमिताभ श्रीवास्तव (Amitabh Shrivastav) ने। पुस्तक में एनएसडी की सन 1959 में हुई स्थापना से लेकर 2008 तक अर्थात एनएसडी के 50 बरसों का इतिहास है।

हाल ही में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अभिमंच सभागार में ‘आधी सदी’ का लोकार्पण किया गया। इस लोकार्पण समारोह में रानावि के उपाध्यक्ष प्रो भरत गुप्त, निदेशक डॉ रमेश चंद्र गौड़, रजिस्ट्रार पी के मोहंती और पुस्तक के लेखक तो मौजूद थे ही। साथ ही विशिष्ट अतिथि के रूप में एनएसडी के पूर्व निदेशक पदमश्री प्रो राम गोपाल बजाज और देवेन्द्र राज अंकुर भी मंच पर विशिष्ट अतिथि के रूप में आसीन थे।

 

इस मौके पर निदेशक रमेश गौड़ (Ramesh Gaur) ने कहा- मुझे खुशी है कि अमिताभ श्रीवास्तव ने एनएसडी के 50 बरसों के इतिहास को इस पुस्तक में संजोकर एक बेहद सराहनीय कार्य किया है। इस पुस्तक के माध्यम से एनएसडी के बारे में ऐसी बहुत सी बातों को भी जाना जा सकेगा, जो लोग नहीं जानते। यह पुस्तक एनएसडी के सभी पूर्व छात्रों के लिए भी उपयोगी होगी और वर्तमान छात्रों और आने वाले छात्रों के लिए भी। साथ ही एनएसडी, यहाँ के विद्यार्थियों और रंगमंच पर शोध करने वाले शोधार्थियों के लिए भी यह पुस्तक वरदान बन सकेगी। इसके बाद हम अब 2008 के बाद के एनएसडी के इतिहास को भो पुस्तक के रूप में लाने के लिए सक्रिय हैं।

उधर एनएसडी के रजिस्ट्रार पी के मोहंती ने कहा- यह निश्चय ही सुखद है कि एनएसडी के इतिहास को अमिताभ श्रीवास्तव ने अपने नज़रिये से पन्नों पर उतारा है। इससे एनएसडी को लेकर अब काफी कुछ जानना आसान होगा। पर मैं चाहूँगा एनएसडी के इतिहास को कुछ और लोग भी लिखें, जिससे एनएसडी को लेकर और लोगों के नजरिए भी सामने आ सकें।

 

बता दें अमिताभ एनएसडी के 1979 बैच के छात्र रहे हैं। वह मित्रों में बॉबी नाम से लोकप्रिय हैं। मैं भी उन्हें 1980 के दशक से करीब से देखता आया हूँ।  उन्होंने यहाँ से अभिनय में विशेषज्ञता के साथ डिप्लोमा प्राप्त करने के बाद मुंबई का रुख ना कर, दिल्ली में रहकर ही रंगमच के लिए काम करने का मन शुरू में ही बना लिया था।

यूं बॉबी ने टीवी और सिनेमा में भी काम किया। पर वह रंगमंच को समर्पित रहे। अल्काजी, कारंथ, रणजीत कपूर, देवेन्द्र राज अंकुर  और एम के रैना के साथ भी बॉबी ने कई नाटक किए। हालांकि बाद में इनकी दिलचस्पी अभिनय से ज्यादा निर्देशन में हो गयी। बरसों पहले उनके किए गए नाटक- एक घोडा 6 सवार, मुख्यमंत्री, आषाढ़ का एक दिन, अंतिम यात्रा और लोककथा आज भी याद हो आते हैं। फिर बॉबी एनएसडी और रंगमंडल के साथ भी बरसों विभिन्न रूपों में जुड़े रहे।

अमिताभ कहते हैं- इस पुस्तक को लिखने का काम मैंने यूं 2007 में ही शुरू कर दिया था। लेकिन बीच में इसका काम रुक गया था। फिर पीछे इसे फिर से शुरू किया, अब यह पुस्तक आपके सामने है। उम्मीद करता हूँ, यह पाठकों को पसंद आएगी।

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