दिवाली पर मंजु शर्मा की कविता- ज्योति-पर्व दीपावली 

ज्योति-पर्व दीपावली

ज्योति-पर्व फिर पावन आया।
गहन अमा की रात्री में भी,
अंधकार को दूर भगाया,
ज्योति-पर्व फिर पावन आया।

आओ मन के अंधियारे को,
सब मिल करके दूर भगाएँ,
मन-मंदिर में भी ज्योति का,
इक छोटा सा दीप जलाएँ,
‘ तमसो मा ज्योतिर्गमय ‘ के,
महामंत्र को फिर दोहराएँ,
प्राण की बाती जलाकर,
नेह-सुधा बरसाने आया,
ज्योति-पर्व फिर पावन आया।।

ज्योति किरण को पा जाने को,
एक पतंगा भी अकुलाता,
मानव मन,अज्ञान-तिमिर में,
प्रतिपल देखो,क्यों भरमाता,
यही पाठ यह सुप्त जगत को,
अलि! देखो सिखलाने आया ।
ज्योति-पर्व फिर पावन आया।

आज विश्व में व्याप्त चतुर्दिक,
अनन्त,असीम,वेदनाएँ,
आओ बाँटें दुःख परस्पर,
ख़ुशियाँ चलो बाँट आएँ,
पाप- कलुष-तम क्या कर लेगा,
दिव्य-ज्योति चमकाने आया,
ज्योति-पर्व फिर पावन आया।

आज करो मिल सभी प्रतिज्ञा,
व्यसन न बन पाए अपना धन,
अंकुश बुद्धि का ले करके,
सात्विक कर लें अपना तन मन,
स्वार्थ-भाव मिट जाए हमारा,
‘ वसुधैव कुटुम्ब’ का गूँजे नारा,
श्रद्धा प्रेम के दीप जलाओ,
राम- राज्य लौटाने आया।
ज्योति- पर्व फिर पावन आया।।

 

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