Ganesh Chaturthi 2023: प्रथम पूजनीय मंगलमूर्ति गणेश, जब भगवान शिव ने देवी पार्वती को गणेश व्रत का महत्व बताया

आर.एस. द्विवेदी। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी का जन्मदिन माना जाता है। गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह त्यौहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है किन्तु महाराष्ट्र में तो इसे बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं। कई प्रमुख जगहों पर भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाती है। साथ ही अपने अपने घरों में भी लाखों-करोड़ों लोग गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करते हैं। हालांकि घरों में कोई डेढ़ दिन तक प्रतिमा रखता है तो कोई अपनी सुविधा और परंपरा के अनुसार अलग अलग दिनों के लिए। लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर प्रतिमा का प्रायः नौ दिन तक पूजन किया जाता है। बड़ी संख्या में आस पास के लोग दर्शन करने पहुँचते हैं। नौ या दस दिन बाद गाजे बाजे से श्री गणेश प्रतिमा को किसी तालाब नदि या समुद्र में  विसर्जित कर दिया जाता है।

शिवपुराण में भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्ति गणेश की अवतरण तिथि बताया गया है। जबकि गणेशपुराण के मत से यह गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था। गण के पति अर्थात् गणपति। संस्कृत कोशानुसार ‘गण’ अर्थात पवित्रक। ‘पति’ अर्थात स्वामी, ‘गणपति’ अर्थात पवित्रकों के स्वामी। शिवपुराण के अन्तर्गत रुद्र संहिता के चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वारपाल बना दिया। साथ ही उस बालक को आदेश दिया कि इस दौरान चाहे कोई भी आए किसी को अंदर प्रवेश नहीं करने देना। उधर शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें भी रोक दिया। इस पर शिवगणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सर काट दिया। इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली।

भयभीत देवताओं ने देवर्षि नारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया। शिवजी के निर्देश पर विष्णु जी उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने हर्षोउल्लास से उस गजमुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया। लेकिन मां पार्वती ने जब यह शंका व्यक्त की, ‘‘मेरा यह पुत्र  विचित्र होने के कारण कहीं लोगों  की उपेक्षा का पात्र तो नहीं बनेगा’’! तब ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू  गणेश्वर है। तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। यह सुन मां पार्वती ने संतोष के साथ प्रसन्नता व्यक्त की। तभी से गणेश जी प्रथम पूजनीय और सभी से विशिष्ट बन गए।

बाद में शिवजी ने गणेश व्रत का महत्व भी पार्वती जी को बताया। तब पार्वती जी ने अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन पर्यन्त 21-21 की संख्या में दूर्वा, पुष्प तथा लड्डुओं से गणेशजी का पूजन किया। तब 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वती जी से आ मिले। उन्होंने भी माँ के मुख से इस व्रत का महात्म्य सुनकर व्रत किया।

कार्तिकेय ने यही व्रत विश्वामित्र जी को बताया। विश्वामित्र जी ने व्रत करके गणेशजी से अपने जन्म से मुक्त होकर ब्रह्म ऋषि होने का वर माँगा।

गणेश चतुर्थी आने से पहले लोग महीने भर से तैयारी करना शुरु कर देते हैं कुछ लोग 10 या 11 दिन पहले से तैयारी करते हैं। गणेश चतुर्थी से काफी दिन पहले बाजारों में श्री गणेश जी की मूर्ति बनना शुरू हो जाती हैं श्रद्धालु लोग मूर्तियों को लेते हैं और अपने मंदिर या घरों में स्थापित करते हैं।

इधर गणेश चतुर्थी से पहले बाजारों में चारों और हमें गणेश जी की मूर्ति के दर्शन होते हैं,बाजार में मेला सा लग जाता है। लोग गांव से सामान खरीदने के लिए आते हैं। इन दिनों सब कुछ वाकई में देखने लायक होता है। गणेश चतुर्थी का यह त्यौहार 11 दिन का होता है। श्रद्धालु अपने-अपने घरों में 10 दिनों तक मिट्टी से बनी हुई श्री गणेश की मूर्ति को रखते हैं, उनकी पूजा करते हैं और कुछ लोग व्रत भी रखते हैं।  गणेश जी की मूर्ति की आरती उतारते हैं, चरण स्पर्श करते हैं और फिर जाकर भोजन करते हैं और 11 वें दिन गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन करते हैं।

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